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पाँचवाँ अध्याय
विश्व-प्रेमी हो न माने जाति क्यों ? और तोड़े कुल कुटुंबी ज्ञाति क्यों ?
उस विधाताने किये ये भेद क्यों ?
ईशकी कृति में मनुज को खेद क्यों ॥१०॥ विप्र क्षत्रिय वैश्य क्या सम हैं कहो। जन्म से द्विज शूद्र क्या हम हैं कहो ॥ ____एक द्विज भी. हाय शूद्र समान हो ।
क्यों न द्विजताका बड़ा अपमान हो ॥११॥ काच है तो काच ही कहलायगा । वह न हीरक हारसे तुल पायगा ॥
शक्ति की प्रति-मूर्ति है जो शेर है ।
श्वान से तुलना करो अन्धेर है ॥१२॥ हो न यदि वषम्य तो संमार क्या । हो न नर नारी विषम तो प्यार क्या ?
हो प्रलय यदि साम्यका अतिरेक हो । ___ कौन किसका हो अगर जग एक हो ॥१३॥ एकसे हो सब ज़रूरत क्या रहे ? कौन किसका बोझ अपने पर सहे ॥
रह सके सहयोग का फिर नाम क्यों ।
काम क्यों ये धाम क्यों ये ग्राम क्यों ॥१४॥ है विषमता है तभी सहयोग भी। हैं विविध रस हैं तभी ये भोग भी ॥