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कृष्ण-गीता था वह क्यों अनुकुल मलमें अब प्रतिकुल हुआ क्यों । कम था वह फूल किसी दिन फिर अब शूल हुआ क्यों ॥ था कसे प्रासाद रूप वह पर अब धृल हुआ क्यों ।
रोपा था किसलिये कभी वह अब गतमूल हुआ क्या ॥४५॥ श्रीकृष्ण ---
जब था जाति-भेद जीवन में समता देनेवाला । बकारी की जटिल समस्याएँ हरलेनवाला ॥ जब इसके द्वारा धंधेकी चिन्ता उड़ जाती थी । तभी श्रुति-स्तुति जाति-भेदको हितकर बतलाती थी ॥४६॥
इससे अच्छी तरह अर्थ का होता था बटवारा । देता था मंताप सभी को बनकर शांति-महारा ॥ सुविधा की थी बात. वर्ण का था न मनुज अभिमानी ।
विप्र शूद्र मब एक घाट पीते थे मिलकर पानी ॥४७|| मब ही की सेवा समाज में, हितकर कहलाती थी। इमीलिये मानव पर मानवको न पूणा आती थी ।। था कुटुम्ब सा जगत मिले रहते थे चारों भाई । जुदा जुदा था कार्य मगर जीवन में न थी जुदाई ॥४८॥
रुचि योग्यता देखकर सबका योग्य विभाग बनाया । बना कर्म से जो विभाग, वह जाति-भेद कहलाया ।। न थी किसी को मिली गुणों की कोई ठेकेदारी ।
उच्च-नीचता-भेद-भावकी थी न कहीं बीमारी ॥४९॥ खान पान व्यवहार विवाहादिक का भेद नहीं था। विप्र शूद्र से मिले किसी को मन मे खेद नहीं था ।