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सातवाँ अध्याय
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है प्राणियों का नाश हिंसा कोष का यह अर्थ है । पर कार्य के सुविचार में यह अर्थ होता व्यर्थ है । हिंमा अहिंसा को समझले मूलसे अब तू यहां तब समझमें आजायगा हिंसा अहिंसा है कहाँ ॥ १० ॥ पहिले समझले 'पाप हिंसा है' कहा यह किसलिये । हिंसा बताया धर्म क्यों ये भेद क्यों किसने किये ॥ उत्तर यही है शान्ति होती है अहिंसा से सदा । अधिकार का रक्षण तथा कल्याण होता सर्वदा ॥ १५ ॥ दुखमूल हिंसा है, अहिंसा शान्ति - सुखका मूल है | यह नियम है सच्चा मगर दिखता कभी प्रतिकूल है । दुग्ख- दासता - कारण अहिंसा देखते हैं हम कभी । हिंसा भयंकर भी दुःखों का बोझ करती कम कभी ॥ १२ ॥
अन्याय हो फिर भी अहिंसा को लिये बैठे रहो । तो पाप का तांडव मचेगा शांति क्यों होगी कही । एकान्त हिंसा या अहिंसा का न करना चाहिये । सन्नीति-रक्षण के लिये भूभार हरना चाहिये || १३ || अन्यायियों को दंड यदि मानव नहीं दे पायगा । तो न्याय की वह दुर्दशा होगी कि सब लुट जायगा ॥ होगी अहिंसा मृत्युसम कल्याण के प्रतिकूल ही । फिर धर्म क्यों होगा अहिंसा यदि बने. सुखशूल ही ||१४|| यदि अल्प हिंसा से अधिक हिंसा टले सुख शान्ति हो । तो 'अल्प हिंसा है अहिंसा' क्यों यहां पर भ्रान्ति हो ॥