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छट्ठा अध्याय
कैसा है वह कष्ट जिसे सह सके न नारी । कैसी वह दुर्दशा जहां रह सके सहन-शीलता कूटकूट कर भरी जहां है ।
न नारी ।
कह सकता है कौन न दृढ़ता भरी वहां है ||१०||
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त्याग-- वीरता -सहनशीलता - तप - चतुराई ब्रह्मचर्य - वात्सल्य आदि गुणगण सुखदाई | नरनारी में हैं समान कुछ भेद नहीं है । व्यक्ति-भेद से भेद जगत में सभी कहीं है ॥ ११ ॥
जातीं जो । पातीं जो ।
हैं ऐसी नारियाँ नरोंसे बढ़ गुणगण पारावार अधिक आदर हैं ऐसे भी पुरुष नारियों से बढ़ जाते । गुण के भंडार अधिक आदर जो पाते || १२॥ नारीमात्र न हीन नहीं नरमात्र हीन हैं । दोनों हैं स्वाधीन परस्पर या अधीन हैं ॥ एक शक्ति की मूर्त्ति एक है शिव की मूरति । दोनों हैं बेजोड़ परस्पर हैं पत्नी पति ॥ १३ ॥ पति स्वामी, यह अर्थ पकड़ कर अगर रहोगे । तो पत्नीका अर्थ स्वामिनी क्यों न कहोगे । है अद्भुत सम्बन्ध परस्पर दोनों स्वामी | या हैं दोनों दास परस्पर या अनुगामी ॥ १४ ॥ यद्यपि कुछ वैषम्य यहां हो रहा ज्ञात है किन्तु उच्चता और नीचता की न बात है |