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तीसरा अध्याय
[ १९ गीत १३ घर गागरिया का भार चली पनिहारियाँ । कर बतियन की भरमार चली पनिहारियाँ ॥४०॥ एक सम्वी चल ठुमक ठुमुक पर रख गगरी का ध्यान । बोली रम रम की सब बतियाँ, अधर धरी मुसकान ।।
भरी रस झारियाँ । धर गागरिया का भार चलीं पनिहारियाँ ॥४१॥ फुलझडियों मी झड़ी मगर था मन गगरी की ओर । कुंजगलिन में बरमाया रस, नाचा मन का मोर ॥
सिंचगई क्यारियाँ । धर गागरिया का भार चली पाहारेयाँ ॥४२॥ मन था एक ध्यान घट का था बातें किंतु हज़ार; एक बात पर बात दूसरी होती थी तयार ॥
अजब तैयारियाँ । धर गागरिया का भार चलीं पनिहारियाँ ॥४३॥ मन है एक, बाटना कैसे, करले इस का ज्ञान । कर्मयोग की नीति सीग्व, कर पनिहारी का ध्यान ।
नीति-गुरु नारियाँ । धर गागरिया का भार चली पनिहारियाँ ॥४४॥
हरिगीतिका स्थिति-प्रज्ञ बनकर कर्मकर समभाव मन में रख सदा । बन कर्मयोगी नीति का रख ध्यान मन में सर्वदा ।। मत राग कर मत द्वेष कर अभिमान भी आने न दे । तू विश्व-हित में लीन रह कर्मण्यता जाने न दे ॥११४॥