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कृष्ण - गीता
आग्विर उभय दल आ डटे, संहारमय तन मन किये, उत्साह से पूरित जयाशा की उमंगों को लिये ।
फुंकने लगे तब शंख, गोमुख नौबतं बजने लगीं; मानों हुई अतिभीत वे, भगवान को भजने लगीं ॥१५॥ जब शंक फूंका भीष्म ने, वनराज सा गर्जन किया; दी यो मलामी युद्ध को, पर-पक्ष का तर्जन किया;
तव पांचजन्य वजा इधर भी, कृष्ण ने उत्तर दिया । उत्साह से पूरित किया मन पांडवों का हर लिया ॥१६॥ यो शंख बजकर जब धनुष पर डोरियाँ चढ़ने लगीं; जब तीक्ष्ण तलवारें बिजलियों सी वहां बढ़ने लगीं ।
बोला तभी अर्जुन, "सुहृद्वर; रथ बढ़ा तो लीजिए; दोनों दलों के बीच में, मुझको खड़ा कर दीजिए ||१७|| अब कौन कौन यहां पधारे युद्ध के मरदार हैं । अन्याय की भी हो विजय, इसके लिये तैयार हैं |
श्रीकृष्ण ने स्पंदन बढ़ाकर, मध्य में तब ला दिया; चारो तरफ कर दृष्टि अर्जुन ने निरीक्षण सा किया || १८ || देखा पितामय हैं यहां, गुरुवर्य द्रोणाचार्य हैं; भाई यहां हैं सैंकड़ा, काका तथा आचार्य हैं ।
आये श्वसुर आये भतीजे, पौत्र आये हैं यहां, हैं मित्र भी आये यहाँ, अंधेर इतना है कहाँ ॥ १९ ॥ जिनने खिलाया है मुझे, दिन-रात आलिंगन किया; उत्पात सब मेरा सहा, मलमूत्र तक हाथों लिया ।