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श्री जैन इतिहास ज्ञान भानु किरण नम्बर २२
श्रीरत्नप्रभसूरीश्वर सद्गुरुभ्यो नमः खरतर-मतोत्पत्ति-भाग पहिला
जैनधर्म आज्ञा प्रधान धर्म है । वीतराग की आज्ञा को शिरोधार्य करने वालों को ही जैन एवं सम्यग्दृष्टि कहा जाता है। यदि वीतराग की आज्ञा के खिलाफ एक अक्षर मात्र भी न्यूनाधिक प्ररूपना करें तो उसको निन्हव, मिथ्यात्वी, उत्सूत्रभाषी कहा जाता है और जिन लोगों के प्रबल मिथ्यात्व मोहनीय कर्म का उदय होता है वही लोग उत्सूत्र प्ररूपना कर स्वयं अपने को तथा दूसरे अनेक जीवों को दीर्घसंसार के पात्र बना देते है।
भगवान महावीरकी मौजूदगी में गोसाला जमाली आदिकोंने भगवान महावीर से खिलाफ होकर उत्सूत्र की प्ररूपना कर अपना नया मत चला दिया था इस पर भी तुर्रा यह है कि भगवान को झूठा बतला कर आप सच्चे बनने की उद्घोषना भी कर दी थी।
इसी प्रकार भगवान के निर्वाण के बाद भी कई उत्सूत्र प्ररूपक निन्हवों ने जन्म लेकर नये नये मत निकाल बिचारे भद्रिक जीवों को संसार में डुबाने का प्रयत्न किया था जिसमें खरतर-मत भी एक है। इस मत के आदि पुरुष ने तीर्थक्कर गणघर और पूर्वाचार्यों की आज्ञा का भंग कर उत्सूत्र की प्ररूपना की थी जैसे: