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क्या ?
अजमेर शहर के बाहर एक दादा - बाड़ी है जिसमें जिनदत्तसूरिजी की छत्री है उस छत्री के गुम्बज में अभी थोड़े समय से कुछ चित्र बनवाये गये हैं जिसमें एक चित्र में एक राजसभा में 'परस्पर साधुओं के शास्त्रार्थ का दृश्य दिखलाया हैं । उस चित्र - के नीचे एक लेख भी है उसमें लिखा है कि :
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" अणहिलपुर पट्टन में दुर्लभ राजा की राजसभा में जैन शासन शृङ्गार जिनेश्वर सूरीश्वरजी महाराज ने उपकेशगच्छीय चैत्यवासियों को परास्त कर विक्रम सम्वत् १०८० में खरतर विरुद प्राप्त किया ।"
उपरोक्त लेख यों तो बिल्कुल गलत एवं कल्पना मात्र ही है उसमें भी उपकेशगच्छीय चैत्यवासी शब्द तो प्रत्येक जैन को आघात पहुँचाने वाला है क्योंकि एक शान्ति प्रिय ज्येष्ठ गच्छ का इस प्रकार अपमान करना सरासर अन्याय है । श्रतः अजमेर के खर तरों का मैंने सूचना दी थी कि या तो इस बात को प्रमाणिक प्रमाणों द्वारा साबित करदें कि जिनेश्वरसूरि और उपकेशगच्छीय चैत्यवासियों के शास्त्रार्थ हुआ था या 'उपकेशगच्छीय' इन शब्दों
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को हटा दें वरन् इस त्यता के लिये मुझे प्रयत्न करना होगा । इस मेरी सूचना को कई दिन गुजर गये पर अजमेर के खर-तरों ने इस ओर लक्ष तक भी नहीं दिया अतः मुझे इस किताब को लिखने की आवश्यकत हुई जो आपके कर कमलों में विद्यमान है। जिसको आद्योपान्त पढ़ने से आपको रोशन होजायगा कि विघ्न संतोषियों ने एक मिथ्या लेख लिख कर जैन समाज के दिल्ल को किस प्रकार आघात पहुँचाया है । अब भी समय है उस शब्द को हटा कर इस मामल को यह। शान्त कर दें
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'लेखक'