Book Title: Kasaypahudam Part 07
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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गा० २२] उत्तरपयडिपदेसविहत्तीए कालपरूपणा
३०. पंचिंदियतिरिक्खतियम्मि मिच्छत्तित्थि-णवंसयवेद-बारसक०-भयदुगुंछाणं जह• पदे. जहण्णुक० एगस० । अज० जह० खुदाभवग्गहणमंतोमुहुत्तं, उक्क० सगहिदी । सम्मत्त-सम्मामि०--अणंताणु० चउक्काणमेवं चेत्र । णवरि अज० जह० एगस० । पंचणोकसायाणं जह० पदे० जहण्णुक० एगस० । अज० जह० अंतो०, उक्क. सगहिदी।
३१. पंचिंदियतिरिक्खअपज्जत्ताणं मिच्छत्त-सोलसक०-भय-दुगुंछ, जह० पदे० जहण्णुक्क० एगस० | अज० जह० खुद्दाभवग्गहणं समयूर्ण, उक्क० अंतोमु० । होती नहीं, इसलिए यहाँ उक्त प्रकृतियोंकी अजघन्य प्रदेशविभक्तिका जघन्य काल क्षुल्लकभवग्रहणप्रमाण कहा है। तथा तियञ्चोंकी उत्कृष्ट कायस्थिति अनन्त काल है, इसलिए उक्त प्रकृतियोंकी अजघन्य प्रदेशविभक्तिका उत्कृष्ट काल अनन्त काल कहा है। यहाँ सम्यक्त्वद्विककी एक समय तक सत्ता उद्वेलनाकी अपेक्षा बन जाती है, इसलिए इनकी अजघन्य प्रदेशविभक्तिका जघन्य काल एक समय कहा है। तथा जो पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण काल तक इनकी उद्वेलना कर सत्त्व नाश हुए बिना तीन पल्यकी आयुवाले तिर्यञ्चोंमें उत्पन्न होकर और सम्यक्त्वको उत्पन्न कर अन्त तक इनकी सत्ता बनाये रखते हैं उनके इतने काल तक इनकी सत्ता दिखलाई देनेसे यहाँ इनकी अजघन्य प्रदेशविभक्तिका उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भाग अधिक तीन पल्य कहा है। अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी अजघन्य प्रदेशविभक्तिका जघन्य काल एक समय पहले अनेक बार घटित करके बतला आये हैं उसी प्रकार यहाँ भी घटित कर लेना चाहिए। तथा इनकी अजघन्य प्रदेशविभक्तिका उत्कृष्ट काल मिथ्यात्वके समान है यह स्पष्ट ही है। इसी प्रकार पुरुषवेद आदि पाँचकी अजघन्य प्रदेशविभक्तिका उत्कृष्ट काल जानना चाहिए । तथा इसका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त प्रथम नरकके समान घटित कर लेना चाहिए।
३०. पञ्च न्द्रिय तियेञ्चत्रिको मिथ्यात्व, स्त्रीवेद, नपुंसकवेद, बारह कषाय, भय और जुगुप्साकी जघन्य प्रदेशविभक्तिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अजघन्य प्रदेशविभक्तिका जघन्य काल सामान्यसे पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चोंमें क्षुल्लकभवग्रहणप्रमाण और शेष दोमें अन्तर्मुहूर्तप्रमाण है और उत्कृष्ट काल अपनी अपनी कायस्थितिप्रमाण है। सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व
और अनन्तानुबन्धीचतुष्कका भङ्ग इसी प्रकार है। इतनी विशेषता है कि इनकी अजघन्य प्रदेशविभक्तिका जघन्य काल एक समय है। पाँच नोकषायोंकी जघन्य प्रदेशविभक्तिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अजघन्य प्रदेशविभक्तिका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल अपनी अपनी स्थितिप्रमाण है।
विशेषार्थ-यहाँ अन्य सब स्पष्टीकरण सामान्य तिर्यञ्चोंके समान कर लेना चाहिए। केवल दो बातों में विशेषता है। एक तो पञ्चेन्द्रिय तियश्च पर्याप्त और पञ्चेन्द्रिय तियञ्च योनिनी जीवोंकी जघन्य भवस्थिति अन्तर्मुहूर्त है, इसलिए इनमें मिथ्यात्व आदिकी जघन्य प्रदेशविभक्तिका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त कहा है। दूसरे इन तीनों प्रकारके तिर्यञ्चोंकी कायस्थिति पूर्वकोटिपृथकत्व अधिक तीन पल्य है और इतने काल तक यहाँ अट्ठाईस प्रकृतियोंकी जघन्य प्रदेशविभक्ति हुए बिना भी सत्ता रह सकती है, इसलिए यहाँ इनकी अजघन्य प्रदेशविभक्तिका उत्कृष्ट काल अपनी अपनी कायस्थितिप्रमाण कहा है।
३१. पञ्चन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्तकोंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय, भय और जुगुप्साकी जघन्य प्रदेश विभक्तिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अजघन्य प्रदेशविभक्तिका
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