Book Title: Kasaypahudam Part 07
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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गा० २२ ]
पदेस वित्तीय द्विदियचूलियाए अप्पाबहुअं
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$ ७४६. एदं पि सुगमं, समाणसामियत्ते वि दव्वगयविसेसमस्तियूण विसेसाहियभावस्स पुन्नमेव समत्थियत्तादो ।
* जहण्णयमुदयहिदिपत्तयमसंखेज्ज गुणं ।
5 ७४७. कुदो ? सामितभेदाभावे वि सेसकसा एहिंतो पडिच्छियूणुकडिददव्वमाहप्पेण पुबिल्लादो एदस्सा संखेज्जगुणत्तदंसणादो। एत्थ गुणगारो असंखेज्जा लोगा ।
* एवमित्थवेद
सयवेद-अरदि-सोगाणं |
९ ७४८. जहा अनंताणुबंधिचक्कस्स जहण्णद्विदिपत्तयाणमप्पा बहु परूवियं एवं पयदकम्माणं पिपरूत्रेयव्त्रं; दव्त्रयिणयावलंबणे विसेसाणुवलंभादो । पज्जवट्ठियणए पुण अवलंबिज्जमाणे सामित्तानुसारेण गुणयारविसेसो जाणियव्वो ।
एवमप्पा बहु समत्तं । तदो द्विदियं ति पदस्स विहासा समत्ता । एत्थेव 'पडी य मोहणिज्जा' एदिस्से मूळगाहाए अत्थो समत्तो ।
तदो पदेसविहत्ती सचूलिया समत्ता ।
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९ ७४६. यह सूत्र भी सुगम है । यद्यपि यथानिषेक और निषेकस्थितिप्राप्त द्रव्यका स्वामी एक है तथापि द्रव्यगत विशेषताकी अपेक्षासे विशेषाधिकता होती है इसका समर्थन पहले ही
ये हैं ।
* उससे जघन्य उदयस्थितिप्राप्त द्रव्य असंख्यातगुणा है ।
$ ७४७. क्योंकि यद्यपि निषेकस्थितिप्राप्त और उदयस्थितिप्राप्त द्रव्यका स्वामी एक है। तथापि शेष कषायोंसे संक्रमित होकर उत्कर्षणको प्राप्त हुए द्रव्य के माहात्म्यसे पूर्व की अपेक्षा यह असंख्यातगुणा देखा जाता है । यहाँ पर गुणकारका प्रमाण असंख्यात लोक है 1
* इसीप्रकार स्त्रीवेद, नपुंसकवेद, अरति और शोकका अल्पबहुत्व जानना चाहिये ।
६४८. जिसप्रकार अनन्तानुबन्धियोंके चारों जघन्य स्थितिप्राप्त द्रव्योंका अल्पबहुत्व कहा है इसीप्रकार प्रकृत कर्मों के जघन्य स्थितिप्राप्त द्रव्योंका अल्पबहुत्व भी कहना चाहिये, क्योंकि द्रव्यार्थिक नयकी अपेक्षा इनके कथनमें कोई विशेषता नहीं पायी जाती । पर्यायार्थिक नयका अवलम्बन करने पर तो स्वामित्व के अनुसार गुणकारविशेष जानना चाहिये ।
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इसप्रकार अल्पबहुत्व के समाप्त होनेपर 'द्विदियं' पदका विशेष व्याख्यान समाप्त हुआ । तथा यहीं पर 'पयडी य मोहणिज्जा' इस मूल गाथाका अर्थं समाप्त हुआ ।
इसप्रकार चूलिका सहित प्रदेशविभक्ति समाप्त हुई ।
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