Book Title: Kasaypahudam Part 07
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
View full book text
________________
गा० २२] उत्तरपडिसपदेविहत्तीए वड्डीए भागाभागो
२१५ असंखे०भागो। असंखे०भागवडि-हाणीणं णेरइयभंगो। पुरिसवेद• संखे०गुणवडिअवहि-असंखे०गुणहाणि० असंखे०भागो । असंखे० भागवडि० संखे०भोगो । असंखे०भागहा० संखेजा भागा। हस्स-रइ-अरइ-सोगा. असंखे भागवडि-हाणि. ओघं । भय-दुगुंछा. अवहि. असंखे०भागो। असंखे०भागहाणि० संखे०भागो । असंखे०भागवडि० संखेज्जा भागा। मणुसपज्ज० एवं चेव । णवरि जम्हि असंखे० भागो तम्हि संखे०भागो । इत्थिवेद० हस्सभंगो । एवं मणुसिणीसु । णवरि पुरिस०णस० असंखे०गुणहा० णस्थि ।
३८६. अणुदिसादि जाव सव्वहा ति मिच्छ०-सम्म०-सम्मामि०-इत्थिणवूस. पत्थि भागाभागो । अणंताणु०४ असंखे०गुणहाणि. असंखे०भागो । असंखे०भागहाणि असंखे०भागा। सव्व णवरि संखे०भागो संखेज्जा भागा। बारसक०-पुरिस०-भय-दुगुंछा० अवडि० सव्वजी० असंखे०भागो। असंखे०भागहा. संखे०भागो । असंखे०भागवडि० संखेज्जा भागा। सव्व संखेज्जं कायव्वं । हस्सरइ-अरइ-सोगाणं देवोघं । एवं जाव अणाहारि त्ति ।
--Marwarivrur
की असंख्यातगुणहानिवाले जीव सब जीवोंके असंख्यातवें भागप्रमाण हैं। असंख्यातभागवृद्धि
और असंख्यातभागहानिका भङ्ग नारकियोंके समान है। पुरुषवेदकी संख्यातगुणवृद्धि, अवस्थितविभक्ति और असंख्यातगुणहानिवाले जीव असंख्यातवें भागप्रमाण हैं। असंख्यातभागवृद्धिवाले जीव संख्यातवें भागप्रमाण हैं। असंख्यातभागहानिवाले जीव संख्यात बहभागप्रमाण हैं। हास्य. रति, अरति और शोककी असंख्यातभागबृद्धि और असंख्यातभागहानिका भङ्ग ओघके समान है। भय और जुगुप्साकी अवस्थितविभक्तिवाले जीव असंख्यातवें भागप्रमाण हैं। असंख्यातभागहानिवाले जीव संख्यात भागप्रमाण हैं। असंख्यातभागवृद्धिवाले जीव संख्यात बहुभागप्रमाण हैं। मनुष्य पर्याप्तकोंमें इसीप्रकार भागाभाग है। इतनी विशेषता है कि जहाँ असंख्यातवें भागप्रमाण हैं वहाँ पर संख्यातवें भागप्रमाण जानना चाहिए। तथा स्त्रीवेदका भङ्ग हास्यके समान है। इसीप्रकार मनुष्यिनियोंमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि पुरुषवेद और नपुंसकवेदकी असंख्यातगुणहानि नहीं है।
६३८६. अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंमें मिथ्यात्व,सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व, सीवेद और नपंसकवेदका भागाभाग नहीं है। अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी असंख्यातगणहानिवाले जीव असंख्यातवें भागप्रमाण हैं। असंख्यातभागहानिवाले जीव असंख्यात बहुभागप्रमाण हैं। इतनी विशेषता है कि सर्वार्थसिद्धि में क्रमसे संख्यातवें भाग और संख्यात बहुभागप्रमाण हैं। बारह कषाय, पुरुषवेद, भय और जुगुप्साकी अवस्थितविभक्तिवाले जीव सब जीवोंके अस
संख्यातवें भागप्रमाण हैं। असंख्यातभागहानिवाले जीव संख्यातवें भागप्रमाण हैं। असंख्यातभागवृद्धिवाले जीव संख्यात बहुभागप्रमाण हैं। मात्र सर्वार्थसिद्धिमें असंख्यातके स्थानमें संख्यात करना चाहिए। हास्य, रति, अरति और शोकका भङ्ग सामान्य देवोंके समान है। इसप्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए।
इसप्रकार भागाभाग समाप्त हुआ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org