Book Title: Kasaypahudam Part 07
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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गा० २२ ] उत्तरपयडिपदेसविहत्तीए वड्डीए अंतरं लोभसंज० असंखे गुणहाणि० पत्थि । पुरिस० अवहि० ज० एगस०, उक्क. असंखेज्जा लोगा । संखे० गुणवडि-असंखे०गुणहाणि० ज० एगस०, उक्क० छम्मासा । सेसं मिच्छत्तभंगो । इत्थि णqस. असंखे०भागवडि-हाणि पत्थि अंतरं । असंखे०गुणहाणि० ज० एगस०, उक्क. वासपुधत्तं । हस्स-रइ-अरइ-सोगाणं असंखे०भागवडिहाणि० णत्थि अंतरं । भय-दुगुंछा० असंखे० भागवडि-हाणि-अवहि० गत्थि अंतरं । एवं तिरिक्खा० । णवरि सेढिपदा पत्थि ईसणमोहक्खवणा च ।
___ ४०७. आदेसेण णेरइय० मिच्छ०--बारसक---पुरिस०--भय--दुगुंछा० असंखे० भागवडि-हाणि. णत्थि० अंतरं। अवहि० ज० एगस०, उक्क० असंखेज्जा लोगा। सम्मत्त-सम्मामि० असंखे०भागहाणि० णस्थि अंतरं । असंखे० भागवडि०असंखे०गुणवडि-हाणि-अवत्त. जह० एगस०, उक्क० चवीसमहोरत्ते साधिगे । अणंताणु०४ असंखे०भागवडि-हाणि० पत्थि अंतरं । अवहि० ज० एगस०, उक्क० असंखेज्जा लोगा। संखे०भागवडि-संखेज्जगुणवडि-असंखे० गुणहाणि-अवत्त० जह० एगस०, उक० चउवीसमहोरते साधिगे। इत्थि--णQस०--हस्स-रइ-अरइ-सोगाणं असंखे० भागवडि-हाणि. पत्थि अंतरं । एवं सव्वणेरइय० पंचिंदियतिरिक्खतिय० और उत्कृष्ट अन्तर छह महीना है। इतनी विशेषता है कि लोभसंज्वलनकी असंख्यातगुणहानि नहीं है। पुरुषवेदकी अवस्थितविभक्तिका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर असंख्यात लोकप्रमाण है । संख्यातगुणवृद्धि और असंख्यातगुणहानिका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर छह महीना है। शेष भङ्ग मिथ्यात्वके समान है। स्त्रीवेद और नपुंसकवेदकी असंख्यातभागवृद्धि और असंख्यातभागहानिका अन्तर काल नहीं है। असंख्यातगुणहानिका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्वप्रमाण है। हास्य, रति, अरति और शोककी असंख्यातभागवृद्धि और असंख्यातभागहानिका अन्तर काल नहीं है। भय और जुगुप्साकी असंख्यातभागवृद्धि, असंख्यातभागहानि और अवस्थितविभक्तिका अन्तर काल नहीं है। इसीप्रकार तियञ्चोंमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनमें श्रेणिसम्बन्धी पद तथा दर्शनमोहनीयकी क्षपणा नहीं है।
६४०७. आदेशसे नारकियोंमें मिथ्यात्व, बारह कषाय, पुरुषवेद, भय और जुगुप्साकी असंख्यातभागवृद्धि और असंख्यातभागहानिका अन्तरकाल नहीं है । अवस्थितविभक्तिका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर असंख्यात लोकप्रमाण है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यातभागहानिका अन्तर काल नहीं है। असंख्यातभागवृद्धि, असंख्यातगुणवृद्धि, असंख्यातगुणहानि और अवक्तव्यविभक्तिका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक चौबीस दित-रात है। अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी असंख्यातभागवृद्धि और असंख्यातभागहानिका अन्तर काल नहीं है। अवस्थितविभक्तिका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर असंख्यात लोकप्रमाण है। संख्यातभागवृद्धि, संख्यातगुणवृद्धि, असंख्यातगुणहानि
और अवक्तव्यविभक्तिका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक चौबीस दिन-रात है । स्त्रीवेद, नपुंसकवेद, हास्य, रति, अरति और शोककी असंख्यातभागवृद्धि और असंख्यातभागहानिका अन्तर काल नहीं है । इसीप्रकार सब नारकी, पञ्चेन्द्रिय
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