Book Title: Kasaypahudam Part 07
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 446
________________ गा० २२ ] पदेसविहत्तीए द्विदियचूलियाए सामित्तं ४१९ ४१९ * चरिमसमयकोहवेदयस्स । ६६८५. एत्थ गुणिदकम्मंसियविसेसणं फलाभावादो ण कदं। कुदो फलाभावो चे १ कोहसंजलणपोराणपढमहिदि सव्वं गालिय पुणो किट्टिवेदगेण ओकड्डियूणंतरमंतरे गुणसेढिआयारेण णिसित्तपढमहिदीए समयाहियावलियचरिमणिसेयं घेत्तूण पयदसामित्तविहाणे गुणिदकम्मंसियत्तकयफलविसेसाणुवलंभादो। खवगविसेसणमेत्थाणुत्तसिद्धमिदि ण कदं । एवं कोहसंजलणस्स सव्वेसि हिदिपत्तयाणमुक्कस्ससामित्तं परूविय सेससंजलणाणं पि सव्वपदाणमेदेण समप्पणहमिदमाह ® एवं माण-माया-लोहाणं ।। ६८६. जहा कोहसंजलणस्स चउण्हं हिदिपत्तयाणं सामित्तविहाणं कयं एवं माण-माया-लोहसंजलणाणं पि कायव्वं, विसेसाभावादो। गवरि जहाणिसेय-णिसेयहिदिपत्तयाणमुक्कस्सदव्यसंचओ कोहसंजलणस्स बंधे वोच्छिण्णे वि लब्भइ जाव सगबधवोच्छेदसमओ ति। अण्णं च लोभसंजलणस्स उक्कस्सयमुदयहिदिपत्तयं गुणिदकम्मंसियस्सेव होइ, एत्तिओ चेव विसेसो।। * जो जीव अपने अन्तिम समयमें क्रोधका वेदन कर रहा है वह उत्कृष्ट उदयस्थितिप्राप्त द्रव्यका स्वामी है । ६६८५. इस सत्रमें विशेष फल न देखकर गुणितकांश यह विशेषण नहीं दिया है। शंका-इस विशेषणका विशेष फल क्यों नहीं है ? समाधान—यह जीव क्षपणाके समय क्रोधसंज्वलनकी पुरानी प्रथम स्थितिको पूरीकी पूरी गला देता है फिर कृष्टिका वेदन करते समय अन्तरकालके भीतर अपकर्षण द्वारा गुणश्रेणिरूपसे प्रथम स्थितिकी रचना करता है । तब एक समय अधिक एक आवलिके अन्तिम निषेककी अपेक्षा प्रकृत स्वामित्वका विधान किया जाता है, अतः इसमें गुणितकांशकृत कोई विशेष फल नहीं पाया जाता है। __सूत्रमें चापक विशेषणका बिना कहे ही ग्रहण हो जाता है, इसलिये उसे सूत्रमें नहीं दिया है। इसप्रकार क्रोधसंज्वलनके सभी स्थितिप्राप्तोंके उत्कृष्ट स्वामित्वका कथन करके शेष संज्वलनों के सभी पदोंका उत्कृष्ट स्वामित्व भी इसीके समान है यह बतलानेके लिये आगेका सूत्र कहते हैं * इसी प्रकार मान, माया और लोभसंज्वलनके सब पदोंका उत्कृष्ट स्वामित्व जानना चाहिए। ६६८६. जिसप्रकार क्रोधसंज्वलन के चारों स्थितिप्राप्तोंके स्वामित्वका कथन किया है उसी प्रकार मान, माया और लोभ संज्वलनोंका की कथन करना चाहिए, क्योंकि इनके कथनमें कोई विशेषता नहीं है। किन्तु इतनी विशेषता है कि उक्त प्रकृतियोंकी अपेक्षा यथानिषेकस्थितिप्राप्त और निषेकस्थितिप्रातके उत्कृष्ट द्रव्यका संचय क्रोधसंज्वलनकी बन्धव्युच्छित्ति हो जानेपर भी अपनी अपनी बन्धव्युच्छित्तिके समय तक होता रहता है। तथा दूसरी विशेषता यह है कि लोभ संज्वलनका उदयस्थितिप्राप्त उत्कृष्ट द्रव्य गुणितकमांशके ही होता है। बस इतनी ही विशेषता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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