Book Title: Kasaypahudam Part 07
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
View full book text
________________
गा० २२ ] पदेसविहत्तीए द्विदियचूलियाए सामित्तं
४२७ तस्सोवट्टणे ठविज्जमाणे तप्पाओग्गमेयसमपबद्ध ठविय पुणो जहाणिसेयकालभंतरसंचयमिच्छामो त्ति तस्सोकड्डुक्कड्डणभागहारोवट्टिददिवडगुणहाणिभागहारे ठविदे जहाणिसेयसंचओ आगच्छइ । ओकड्डणादीहि गंतूण पुणो वि एत्थेव पदिददव्चमेदस्स असंखेज्जदिभागमेतमिच्छिय तम्मि भागहारे किंचूणीकदे पयदणिसेयदव्वमागच्छइ । असंखेज्जभागूणं चेवमंतरं करेमाणेणुकड्डिय अणुक्कीरमाणीसु हिदीसु उविददव्व होइ । पुणो एदस्सोकड्डक्कड्डणभागहारे ठविदे पढमसमयमिच्छादिहिणोकड्डिददव्वं पयदणिसेयपडिबद्धमागच्छइ।।
७०२, संपहि तप्पाओग्गुक्कस्ससंकिलेसेणोदीरिददव्वमिच्छामो त्ति असंखेजलोगभागहारमावलियाए गुणिदं ठवेऊणोकड्डिदे पयदजहण्णसामितपडिग्गहियं दव्व. मागच्छइ । एत्थ मिच्छाइद्विविदियादिसमएसु जहण्णसामित्तं दाहामो ति णासंकणिज्जं, विदियादिसमएसु उदीरिजमाणबहुअदव्वपवेसे ण जहण्णत्ताणुववत्तीदो। पढमसमयम्मि ओकड्डियण णिसितदव्वं विदियादिसमएसु उदयमागच्छमाणमत्थि चेव । तस्सुवरि पुणो वि पुव्वं तिस्से हिदीए उक्कड्डिदपदेसग्गमुदयावलियम्भंतरे ओकड्डियूण
समाधान-विवक्षित स्थितिमें जितना द्रव्य है उसका असंख्यातवाँ भागप्रमाण द्रव्य निषेकस्थितिप्राप्त होता है ऐसा हम कहते हैं।
अब इसको प्राप्त करनेके लिये भागहार क्या है यह बतलाते हैं-एक समयप्रबद्धको स्थापित करे फिर यथानिषेक कालके भीतर सञ्चय लाना इष्ट है इसलिये उसका अपकर्षण-उत्कर्षण भागहारसे भाजित डेढ़ गुणहानिप्रमाण भागहार स्थापित करे, इससे यथानिषेकका सञ्चय आ जाता है। अपकर्षणादिकके द्वारा व्ययको प्राप्त हुआ द्रव्य फिरसे इसीमें अर्थात् यथानिषेकके द्रव्यमें सम्मिलित हो जाता है जो कि इसके असंख्यातवें भागप्रमाण है, अतः उसे अलग करनेकी इच्छासे प्रकृत भागहारको कुछ कम कर देनेपर प्रकृत निषेकका द्रव्य आ जाता है। तात्पर्य यह है कि अन्तरको करते समय उत्कर्षण द्वारा अनुत्कीर्यमाण स्थितियोंमें जो द्रव्य प्राप्त होता है वह पूर्वोक्त द्रज्यसे असंख्यातवें भागप्रमाण कम होता है। फिर इसका अपकर्षणउत्कर्षणप्रमाण भागहार स्थापित करनेपर प्रथम समयवर्ती मियादृष्टिके द्वारा प्रकृत निषेकसम्बन्धी अपकर्षित द्रव्यका प्रमाण होता है।
६७०२. अब तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट संक्लेशके द्वारा उदीरणाको प्राप्त हुआ द्रव्य लाना है, इसलिये आवलिके असंख्यातवें भागसे गुणित असंख्यात लोकप्रमाण भागहारको स्थापित करके जो द्रव्य प्राप्त हो उतने द्रव्यका अपकर्षण करनेपर प्रकृत जघन्य स्वामित्वसे सम्बन्ध रखनेवाला द्रव्य आता है।
शंका-यहाँ पर मिथ्यादृष्टिके द्वितीयादि समयोंमें जघन्य स्वामित्व दिया जाना चाहिये ?
समाधान-ऐसी आशंका करना ठीक नहीं है, क्योंकि द्वितीयादि समयोंमें उदीरणाके द्वारा बहुत द्रव्यका प्रवेश हो जाता है, इसलिये वहाँ जघन्य द्रव्य नहीं प्राप्त हो सकता। आशय यह है कि जिस द्रव्यका प्रथम समयमें अपकर्षण होकर ऊपरकी स्थितियोंमें निक्षेप हुआ है वह तो द्वितीयादि समयोंमें उदयमें आता हुआ देखा ही जाता है। किन्तु इसके अतिरिक्त उस स्थितिके जिस द्रव्यका पहले उत्कर्षण हुआ था उसका अपकर्षण होकर फिरसे उदयावलिके भीतर उस
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org