Book Title: Kasaypahudam Part 07
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 474
________________ गा० २२ ] मेण । तं भागहारो । पुण हो । पदेस वित्तीय द्विदियचूलियाए अप्पाबहुअं अधाणिसेयदव्वस्स असंखे ० भागमेत्तं । तस्स पडिभागो ओकड्डुकड्डुण * उदयहिदिपत्तयमुक्कस्सयमसंखेज्ज गुणं । $ ७३६. कुदो ? सव्वेसिं कम्माणं गुणसेडिगोवुच्छोदएण पत्तकरसभावत्तादो । एत्थ गुणगारो सम्मत्तस्स अंगुलस्स असंखेदिभागो । लोहसंजलजस्स संखेज्जरुवगुणिददिवडूगुणहाणिमेत्तो । तिण्णिसं जलण-तिवेदाणं तप्पा ओग्गप लिदोवमा संखेज्जदिभागमेत्तो । सेसकम्माणमसंखेज्जपलिदोवमपढमवग्गमूलमेत्तो । एत्थोवट्टणं ठविय सिस्साणं पडिवोहो काव्वो । एवमुकस्सप्पाबहुयं समत्तं । * जहण्णयाणि कायव्वाणि १७३७. एतो उवरि जहण्णद्विदिपत्तगाणमप्पाबहुअं कायव्वमिदि भणिदं * सवत्थवं मिच्छत्तस्स जहणणयमग्गहिदिपत्तयं । ३ ७३८. किं कारणं ? एगपरमाणुपमाणत्तादो | ४४७ फिरसे वहाँ प्राप्त होनेपर जितना इसका प्रमाण है उतना अधिक है किन्तु यह यथानिषेकस्थितिप्राप्त द्रव्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है । उसका प्रतिभाग अपकर्षण- उत्कर्षण भागहार है I Jain Education International * उससे उत्कृष्ट उदयस्थितिप्राप्त द्रव्य असंख्यातगुणा है । ६७३६. क्योंकि सभी कर्मों के गुणश्रेणिगोपुच्छा के उदयसे इस उत्कृष्ट द्रव्यकी प्राप्ति होती है, इसलिए यह उत्कृष्ट निषेकस्थितिप्राप्त से भी असंख्यातगुणा है । यहाँ सम्यक्त्वका गुणकार अङ्गुलके असंख्यातवें भागप्रमाण है। लोभसंज्वलनका गुणकार संख्यात अङ्कों से गुणित डेढ़ प्रमाण है। तीन संज्वलन और तीन वेदों का गुणकार तद्योग्य पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है । तथा शेष कर्मों का गुणकार पल्यके असंख्यात प्रथम वर्गमूलप्रमाण है । यहाँ पर भागहारको स्थापित करके शिष्यों को प्रतिबोध कराना चाहिये । इस प्रकार उत्कृष्ट अल्पबहुत्व समाप्त हुआ । * अब जघन्य अल्पबहुत्वका कथन करना चाहिये । ९ ७३७. अब इससे आगे जघन्य स्थितिप्राप्त द्रव्यों के अल्पबहुत्वका कथन करना चाहिये, यह इस सूत्र का तात्पर्य है । * मिथ्यात्वका जघन्य अग्रस्थितिप्राप्त द्रव्य सबसे थोड़ा है । ६७३८. क्योंकि इस प्रमाण एक परमाणु है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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