Book Title: Kasaypahudam Part 07
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पदेसविहत्ती ५ ६५०५. एत्थ अढण्हं कसायाणमिदि अहियारसंबंधो । सुगममन्यत् ।
8 गुणिदकम्मंसियस्स संजमासंजम-संजम-दंसणमोहणीयक्खवणगुणसेढीओ एदारो तिषिण गुणसेढीयो काऊण असंजमं गदो तस्स पढमसमयअसंजदस्स गुणसेढिसीसयाणि उदयमागदाणि तस्स अकसायाणमुक्कस्सयमुदयादो झीणहिदियं ।
५०६. एत्थ पदसंबंधो एवं कायव्यो । तं जहा-गुणिदकम्मंसियस्स अट्ठकसायाणमुक्कस्सयमुदयादो झीणहिदियं होइ । किं सर्वस्यैव ? नेत्याह-संजमासंजमसंजम-दसणमोहणीयक्खवणगुणसेढीओ ति एदाओ तिण्णि गुगसेढीओ कमेण काऊण असंजमं गदो तस्स पढमसमयअसंजदस्स जाधे गुणसेढिसीसयाणि उदयमागदाणि ताधे पयदुक्कस्ससामित्तं होइ ति । किमहमेसो पयदसामिओ असंजमं णीदो ? ण, अण्णहा अहकसायाणमुदयासंभवादो। एत्थाणंताणुबंधिविसंजोयणगुणसेढीए सह चत्तारि गुणसेढीओ किण्ण परूविदाओ त्ति णासंकणिज्जं, तिस्से सगअपुव्वाणियटिकरणद्धाहितो विसेसाहियगलिदसेससरूवाए एतियमेत्तकालमवठाणासंभवादो । तम्हा
___६५०५. इस सूत्रमें अधिकारके अनुसार 'आठ कषायोंके' इन पदोंका सम्बन्ध कर लेना चाहिये। शेष कथन सुगम है।
___* जो गुणितकर्माशवाला जीव संयमासंयम, संयम और दर्शनमोहनीयकी तपणासम्बन्धी इन तीन गुणश्रेणियोंको करके असंयमको प्राप्त हुआ है उस असंयतके जब प्रथम समयमें गुणश्रेणिशीर्ष उदयको प्राप्त होते हैं तब वह आठ कपायोंके उदयकी अपेक्षा झीनस्थितिवाले उत्कृष्ट कर्मपरमाणुओंका स्वामी होता है।
५०६. यहाँ पदोंके सम्बन्ध करनेका क्रम इस प्रकार है-गुणितकाशवाला जीव आठ कषायोंके उदयकी अपेक्षा झीनस्थितिवाले उत्कृष्ट कर्मपरमाणुओंका स्वामी होता है ।
शंका-क्या सभी गुणितकाशवाले जीव स्वामी होते हैं ?
समाधान-नहीं, किन्तु जो संयमासंयम, संयम और दर्शनमोहनीयकी क्षपणा सम्बन्धी इन तीन गुणश्रेणियोंको क्रमसे करके असंयमको प्राप्त हुआ है प्रथम समयवर्ती उस असंयतके जब गुणश्रेणिशीर्ष उदयको प्राप्त होते हैं तब प्रकृत उत्कृष्ट स्वामित्व प्राप्त होता है।
शंका-यह प्रकृत स्वामी असंयमको क्यों प्राप्त कराया गया ?
समाधान नहीं, क्योंकि अन्यथा आठ कषायोंका उद्य नहीं बन सकता था। और यहाँ उनका उदय अपेक्षित था, इसलिये यह असंयमको प्राप्त कराया गया है।
शंका-यहाँ अनन्तानुबन्धीकी विसंयोजनासन्बन्धी गुणश्रेणिके साथ चार गुणश्रेणियोंका कथन क्यों नहीं किया ?
समाधान—यहाँ ऐसी आशंका करना ठीक नहीं है, क्योंकि वह अपने अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरणके कालसे कुछ ही अधिक होती है, इसलिये शेष भागके गल जानेसे इतने कालतक उसका सद्भाव मानना असंभव है।
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