Book Title: Kasaypahudam Part 07
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 434
________________ गा० २२] पदेसविहत्तीए द्विदियचूलियाए सामित्तं ४०७ इडिभावेणंतोमुहुत्तमच्छिय पुणो वि सेढिसमारोहण दसणमोहणीयमणंताणुबधिविसंजोयणपुरस्सरमुवसामिय कसायाणमुवसामणहमधापवत्तकरणं पविठ्ठपढमसमए वट्टमाणम्मि अहियारहिदीए जहाणिसेयचिराणसंचयदव्यमेगसमयपबद्धस्स असंखेज्जभागमेत्तं होइ। ६६७४. तस्सोवणे उविज्जमाणे एगं पंचिंदियसमयपबद्धं ठविय एदम्मि ओकड्डुक्कड्डणभागहारेणोवट्टिदसादिरेयदिवडगुणहाणीए भागे हिदे तत्थतणचिराणसंतकम्मसंचयदव्वमागच्छइ। एवंविहेण पुत्रसंचएणुवसमसेहिमेत्तो बहुदव्वसंचयकरण चढमाणो अधापवत्तपढमसमयम्मि तदणंतरहेहिमहिदिव धयादो पलिदोवमस्स असंखेजदिभागमेत्तमोसरिदूर्णतोकोडाकोडिमेत्तहिदि बधइ । ६७५. संपहियब धमस्सियूण अहियारगोवुच्छाए उवरि णिसित्तदव्वे इच्छिज्जमाणे एगं पंचिंदियसमयपबद्धं ठविय पुणो एदस्स असंखेजभागभहियदिवड्डभागहारं ठविदे पढमणिसेयादो संखेज्जावलियमेतद्धाणमुवरि चढियूणावहिदअहियारहिदीए णिसित्तदव्वमागच्छदि । एवं बधमस्सियूण पयदगोवुच्छसंचयभागहारो परूविदो। संपहि तत्येव हिदिपरिहाणिमस्सियण लब्भमाणसंचयाणुगमं वत्तइस्सामो । को हिदिपरिहाणिसंचओ णाम ? उच्चदे-एयं द्विदिव'धं बधिय पुणो सम्यक्त्वको उत्पन्न किया। फिर वेदकसम्यक्त्वके साथ अन्तर्मुहूर्त तक रहकर श्रेणिपर चढ़नेके लिये अनन्तानुबन्धीकी विसंयोजनाके साथ दर्शनमोहनीयका फिरसे उपशम किया। इस प्रकार यह जीव जब कषायोंका उपशम करनेके लिये उद्यत होता है तब इसके अधःकरणमें प्रवेश करके उसके प्रथम समयमें विद्यमान रहते हुये विवक्षित स्थितिमें यथानिषेकका प्राचीन सत्कर्म एक समयप्रबद्धका असंख्यातवाँ भाग प्राप्त होता है। ६६७४. अब इस द्रव्यको प्राप्त करनेके लिए भागहार क्या है यह बतलाते हैं-पंचेन्द्रियके एक समयप्रबद्धको स्थापित करे। फिर इसमें अपकर्षण-उत्कर्षणभागहारसे भाजित साधिक डेढ़ गुणहानिका भाग देनेपर वहाँका प्राचीन सत्कर्मरूप संचयद्रव्य आता है। इस प्रकार यहाँ जो पूर्व संचय प्राप्त हुआ है सो उससे बहुत द्रव्यका संचय करनेके लिये यह जीव उपशमश्रेणिपर चढ़ता हुआ अधःप्रवृत्तकरणके प्रथम समयमें इसके अनन्तरवर्ती पूर्व समयमें जितना स्थितिबन्ध किया रहा उससे पल्यके असंख्यातवें भाग कम अन्तःकोड़ाकोड़ीप्रमाण स्थितिबन्धको करता है। ६६७५. अब इस समय बंधे हुए द्रव्यकी अपेक्षा अधिकृत गोपुच्छामें निक्षिप्त हुआ द्रव्य लाना चाहते हैं, इसलिये पंचेन्द्रियके एक समयप्रबद्धको स्थापित करके फिर इसका असंख्यातवाँ भाग अधिक डेढ़ गुणहानिप्रमाण भागहार स्थापित करे । ऐसा करनेसे प्रथम निषेकसे संख्यात वलि ऊपर जाकर स्थित हुई अधिकृत स्थितिमें जो द्रव्य निक्षिप्त होता है उसका प्रमाण आ जाता है । इस प्रकार बन्धकी अपेक्षा प्रकृत गोपुच्छामें संचयको प्राप्त हुए द्रव्यके भागहारका कथन किया। अब वहीं पर स्थितिपरिहानिकी अपेक्षा प्राप्त होनेवाले संचयका विचार करते हैं शंका-स्थितिपरिहानिसंचय किसे कहते हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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