Book Title: Kasaypahudam Part 07
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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गा० २२] पदेसविहत्तीए द्विदियचूलियाए सामित्तं
४१५ एवमुवरि चढिय अंतोमुहुत्तद्धमच्छिय तदो अद्धाक्खएण परिवदमाणगो सुहुमसांपराइयद्ध वोलिय अणियहिउवसामगो जादो । संयहि एवमोदरमाणस्स कम्हि पदेसे अहियारहिदिसंचयं लहइ ति पुच्छिदे जम्हि उद्देसे चढमाणस्स संचयवोच्छेदो जादो तमुद्देसं थोवंतरेण ण पावेइ ति ओयरमाणस्स संखेनंतोमुहुत्तब्भहियअढवस्समेत्तहिदिबधो जायदे । तत्तो पहुडि अहियारगोवुच्छा अधाणिसेयसंचयं लहइ । एवं णेदव्वं जाव असंखेज्जवस्समेत्तो द्विदिबधो जादो त्ति । किंविहो सो असंखेज्जवस्सिओ हिदिबंधो ति भणिदे तप्पाओग्गसंखेज्जरूवाणि ओकडडुकड्डणभागहारं च अण्णोण्णगुणं करिय णिप्पाइदो जो रासी तत्तियमेत्तो जाव एह र ताव संचयं लहामो । एत्तो उपरि संचयं ण लहामो, ओकडडुक्कड्डणाहिं गच्छमाणदव्वस्स हिदिपरिहाणिसंचयं पेक्खियूण बहुत्तुवलंभादो । एवमेत्तियमेत्तकालसंचयं काऊण तदो अणियट्टिअपुव्व-अधापवत्तकमेण हेडा परिवदिय पुणो वि अंतोमुहुत्तेण कसायउवसामणाए अब्भुहिदो। एदिस्से वि उवसमसेढीए संचयविही पुव्वं च परूवेयव्वा । णवरि चढमाणस्स जाधे संखेज्जरूवगुणिदोकड्डुक्कड्डणभागहारमेत्तहिदिबधो जादो तदो पहुडि संचयं लहामो, हेट्टा आयादो वयस्स बहुत्तोवलंभादो। सेसविहीए गस्थि स्थितिसे नीचे ही प्राप्त होते हैं। इस प्रकार ऊपर चढ़कर और अन्तर्मुहूर्त कालतक वहाँ रहकर फिर उपशान्तमोहका काल पूरा हो जानेके कारण वहाँसे गिरकर और सूक्ष्मसाम्परायिकके कालको बिताकर अनिवृत्तिउपशामक हो जाता है।
शंका-इसप्रकार उतरनेवाले इस जीवके विवक्षित स्थितिका सञ्चय किस स्थानमें प्राप्त होता है ?
समाधान-जिस स्थानमें चढ़नेवाले जीवके सञ्चयकी व्युच्छित्ति होती है उस स्थानको थोड़े अन्तरसे नहीं प्राप्त करता, इसलिए उतरनेवाले जीवके जब संख्यात अन्तर्मुहूर्त अधिक आठ वर्षप्रमाण स्थितिबन्ध होता है तब वहाँसे लेकर विवक्षित गोपुच्छा यथानिषेक सञ्चयको प्राप्त होती है।
इसप्रकार असंख्यात वर्षप्रमाण स्थितिबन्धके होने तक जानना चाहिये। शंका-वह असंख्यात वर्षप्रमाण स्थितिबन्ध किस प्रकारका होता है ?
समाधान-तद्योग्य संख्यात अंकोंको और अपकर्षण-उत्कर्षण भागहारको परस्परमें गुणा करनेसे जो राशि उत्पन्न हुई उतना इतने दूर जाने तक यह संचय प्राप्त होता है, इससे ऊपर सञ्चय नहीं प्राप्त होता, क्योंकि अपकर्षण-उत्कर्षणके द्वारा व्ययको प्राप्त होनेवाला द्रव्य स्थितिपरिहानिसे होनेवाले सञ्चयकी अपेक्षा बहुत पाया जाता है।
इस प्रकार इतने कालतक सञ्चय करके फिर अनिवृत्तिकरण, अपूर्वकरण और अधःप्रकरणके क्रमसे नीचे गिरकर फिर भी अन्तर्मुहूर्त बाद कषायोंका उपशम करनेके लिए उद्यत हुआ। इसके भी उपशमश्रेणिमें सञ्चयका क्रम पहलेके समान कहना चाहिये । किन्तु इतनी विशेषता है कि चढ़नेवाले जीवके जब संख्यात अङ्कसे गुणित अपकर्षण-उत्कर्षण भागहारप्रमाण स्थितिबन्ध होता है तब वहाँसे सञ्चय प्राप्त होता है, क्योंकि नीचे आयसे व्यय बहुत पाया जाता है । इसके अतिरिक्त
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