Book Title: Kasaypahudam Part 07
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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पा० २२ ] पदेसविहत्तीए झीणाझीणचूलियाए अप्पाबहुअं ३५९
* जहा मिच्छत्तस्स जहएणयमप्पाबहुअं तहा जेसिं कम्मंसाणमुदीरणोदो अत्थि तेसि पि जहएणयमप्पाबहुअं ।
५८६. जहा मिच्छत्तस्स चत्तारि पदाणि अस्सियूण जहण्णप्पाबहुअं परूविदं तहा सेसाणं पि उदीरणोदइल्लाणं कम्माणं णेदव्वमिदि सुत्तत्थसंगहो ।
* अणंताणुबंधि-इत्थि-णवुसयवेद-अरइ-सोगा त्ति एदे अह कम्मंसे मोत्तण सेसाणमुदीरणोदयो।।
५८७. एत्थ उदीरणाए चेव उदयो उदीरणोदओ त्ति सावहारणो सुत्तावयवो, अण्णहा अणंताणुबंधिआदीणं परिवज्जणाणुववत्तीदो । जेसि कम्मसाणमुदयावलियभंतरे अंतरकरणेण अच्चंतमसंताणं कम्मपरमाणणं परिणामविसेसेणासंखेजलोगपडिभागेणोदीरिदाणमणुहवो तेसिमुदीरणोदओ ति एसो एत्थ भावत्यो । ण चाणंताणुबंधिआदीणमेवंविहो उदीरणोदयो संभवइ, तत्थ तदणुवलंभादो । तदो सुतुत्तपयडीओ अह मोत्तण सम्मत्त-सम्मामिच्छत्त-बारसकसाय-पुरिसवेद-हस्स-रदि-भय-दुगुंछाणमुदीरणाए चेव सुद्धाए पत्तजहण्णसामित्ताणं मिच्छत्तस्सेव अप्पाबहु अमणुणाहियं वत्तव्वमिदि सिद्धं ।
® जेसिं ण उदीरणोदयो तेसि पि सो चेव आलावो अप्पाबहुअस्स जहण्णयस्स ।
* जैसे मिथ्यात्वका जघन्य अल्पबहुत्व है वैसे ही जिन कर्मो का उदीरणोदय होता है उनका भी जघन्य अल्पबहुत्व जानना चाहिये ।
६५८६. जैसे मिथ्यात्वका चार पदोंकी अपेक्षा जघन्य अल्पबहुत्व कहा है वैसे उदीरणोदयवाले शेष कर्मों का भी जघन्य अल्पबहुत्व जानना चाहिये यह इस सूत्रका समुदायार्थ है।
_* अनन्तानुबन्धी, स्त्रीवेद, नपुंसकवेद, अरति और शोक इन आठ कर्मो को छोड़कर शेष कर्म उदीरणोदयरूप हैं ।
६५८७. यहाँ पर उदीरणा ही उदयरूपसे विवक्षित है इसलिये उदीरणोदय यह सूत्रवचन अवधारण सहित है । अन्यथा अनन्तानुबन्धी आदिका निषेध नहीं किया जा सकता है। अन्तर कर देनेके कारण उदयावलिके भीतर जिन कर्मोके कर्मपरमाणु बिलकुल नहीं पाये जाते हैं, परिणामिवशेषके कारण असंख्यात लोकप्रमाण प्रतिभागके अनुसार उदीरणाको प्राप्त हुए उनका अनुभव करना उदीरणोदय है यह इसका अभिप्राय है। अनन्तानुबन्धी आदिका इस प्रकार उदीरणोदय सम्भव नहीं है, क्योंकि इन प्रकृतियोंका उदीरणोदय नहीं पाया जाता है। इसलिये सूत्रोक्त आठ प्रकृतियों के सिवा जो सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व, बारह कषाय, पुरुषवेद, हास्य, रति, भय और जुगुप्सा प्रकृतियाँ हैं इनकी शुद्ध उदीरणा होने पर ही जघन्य स्वामित्व प्राप्त होता है इसलिये इनका अल्पबहुत्व न्यूनाधिकताके बिना मिथ्यात्वके समान कहना चाहिये यह बात सिद्ध हुई।
* तथा जिनका उदीरणोदय नहीं होता उनका भी जघन्य अल्पबहुत्वविषयक आलाप उसी प्रकार है।
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