Book Title: Kasaypahudam Part 07
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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गा० २२] पदेसविहत्तीए द्विदियचूलियाए सामित्त
३६७ गच्छइ । एवमेगेगखंडे गच्छमाणे पुवभागहारवेतिभागमेत्तद्धाणं गंतूण पयदणिसेयस्स अद्धमत्तं चेहइ। पुणो वि एत्तियमद्धाणं गंतूण चउभागो चेहइ । एवमुवरि वि
यव्वं जाव अहियारहिदी उदयावलियब्भंतरे पविहा ति । एवं होइ ति काऊणेत्थतणणाणागुणहाणिसलागाणं पमाणाणुगमं कस्सामो। तं कथं ? ओकड्ड कड्डणभागहारवेतिभागमेतद्धाणं गंतूण जइ एया गुणहाणिसलागा लब्भइ तो असंखेज्जपलिदोवमपढमवग्गमूलपमाणं जहाणिसेयकालम्मि केत्तियाओ गाणागुणहाणिसलागाओ लहामो ति तेरासियं काऊण जोइदे असंखेजपलिदोवमपढमवग्गमलमेत्ताओ लभंति । पुणो इमाओ विरलिय विगं करिय अण्णोण्णब्भासे कदे असंखे जा लोगा उप्पज्जति । तदो एत्तियं पि भागहारत्तेण समयपबद्धस्स हेहदो ठवेयव्वमिदि. भणियं । पुणो एदे तिण्णि वि भागहारे अण्णोण्णपदुप्पण्णे करिय समयपबद्धम्मि भागे हिदे आदिसमयपबद्धमस्सियूण अहियारहिदीए जहाणिसयसरूवेणावहिदपदेसग्गमागच्छद । तम्हा असंखेज्जलोगमेतो आदिसमयपबद्धस्स संचयस्स अवहारो ति घेत्तव्वं । संपहि विदियसमयपबद्धसंचयस्स वि भागहारो एवं चेव वत्तव्यो। वरि पढमसमयसंचयभागहारादो सो किंचूगो होइ। केत्तिएणणो ति भणिदे ओकड कड्डणभागहारेण खंडिय तत्थेयखंडमेत्तेण । एवं भागहारो थोवूणकमेण तदियसमयपबद्धसंचयप्पहुडि प्रकार एक एक खण्डके अन्य गोपुच्छारूप होते हुए पूर्व भागहारके दो बटे तीन भागप्रमाण स्थानोंके जाने पर प्रकृत निषेक अर्धभागप्रमाण शेष रहता है। फिर भी इतने ही स्थान जाने पर प्रकृत निषेक चतुर्थ भागप्रमाण शेष रहता है। इस प्रकार आगे भी अधिकृत स्थितिके उदयावलिमें प्रवेश होने तक जानना चाहिये। ऐसा होता है ऐसा समझकर यहाँकी नाना गुणहानिशलाकाओंके प्रमाणका विचार करते हैं। यथा-अपकर्षग-उत्कर्षणभागहारके यदि दो बटे तीन भाग प्रमाण स्थान जाने पर एक गुणहानिशलाका प्राप्त होती है तो पल्यके असंख्यात प्रथम वर्गमूलप्रमाण यथानिषेक कालमें कितनी नाना गुणहानिशलाकाएँ प्राप्त होंगी इस प्रकार त्रैराशिक करने पर वे नाना गुणहानिशलाकाए पल्यके असंख्यात प्रथम वर्गमूलप्रमाण ही प्राप्त होती हैं। फिर इनका विरलन कर और दूना कर परस्परमें गुणा करने पर असंख्यात लोकप्रमाण राशि उत्पन्न होती है। इसीसे इसे भी भागहाररूपसे समयप्रबद्धके नीचे स्थापित करे यह कहा है। फिर इन तीनों ही भागहारोंका परस्परमें गुणा करके जो प्राप्त हो उसका समयप्रबद्धमें भाग देने पर प्रथम समयप्रबद्धकी अपेक्षा अधिकृत , स्थितिमें यथानिषेकरूपसे जो द्रव्य अवस्थित है उसका प्रमाण आता है, इसलिये प्रथम समयप्रबद्ध के संचयका भागहार असंख्यात लोकप्रमाण ग्रहण करना चाहिये। दूसरे समयप्रबद्ध के संचयका भी भागहार इसी प्रकार कहना चाहिये । किन्तु प्रथम समयसम्बन्धी संचयके भागहारसे वह कुछ कम होता है।
शंका--कितना कम होता है ?
समाधान-अपकर्षण-उत्कर्षण भागहारका भाग देने पर जो एक भाग प्राप्त होता है उतना कम होता है।
इस प्रकार भागहार उत्तरोत्तर कम होता हुआ तीसरे समयप्रबद्धके संचयसे लेकर
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