Book Title: Kasaypahudam Part 07
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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गा० २२ ] पदेसविहत्तीए द्विदियचूलियाए सामित्तं
३६६ ___६६५२. एवमेत्तिएण पबंधेण उकस्सजहाणिसेयहिदिपत्तयस्स सामित्तं परूविय संपहि एदेणेव गयत्थस्स णिसेयहिदिपत्तयस्स वि सामित्तसमुप्पण्णहमुत्तरं मुत्तं भणइ
*णिसेयहिदिपत्तयं पि उकस्सयं तस्सेव ।।
६६५३. गयत्थमेदं मुत्तं, पुग्विल्लादो अविसिहपरूवणतादो। अदो चेव कममुल्लंघिय तस्सेव पुव्वं सामित्तविहाणं कयं, अण्णहा एदस्स जाणावणोवायाभावादो। एत्थ पुण विसेसो-पमाणाणुगमे कीरमाणे पुग्विल्लदव्वादो ओकड्ड कड्डणाए गंतूण पुणो वि तत्थेव पदिददव्वमेतेणेदं विसेसाहियं होइ त्ति वत्तव्वं ।।
६५४. संपहि जहावसरपत्तमुक्कस्सयमुदयहिदिपत्तयस्स सामित्तं परूवेमाणो पुच्छामुत्तमाह
8 उदयहिदिपत्तयमुक्कस्सयं कस्स ? ६६५५. एत्थ मिच्छत्तस्से ति अहियारसंबंधो । सेसं सुगमं । * गुणिदकम्मंसिओ संजमासंजमगुणसेढिं संजमगुणसेटिं च काऊण
६६.२. इस प्रकार इतने प्रबन्धके द्वारा उत्कृष्ट यथानिषेकस्थितिप्राप्तके स्वामित्वका कथन करके अब यद्यपि निषेकस्थितिप्राप्त इसी प्रबन्धके द्वारा गतार्थ है तथापि उसके स्वामित्व को बतलानेके लिये आगेका सूत्र कहते हैं
* उत्कृष्ट निषेकस्थितिप्राप्त द्रव्यका स्वामी भी वही है।
६६५३. यह सूत्र अवगतप्राय है, क्योंकि पिछले सूत्रसे इसके कथनमें कोई विशेषता नहीं है। और इसीलिये क्रमका उल्लंघन करके पहले उसीके स्वामित्वका कथन किया है, अन्यथा इसके ज्ञान करानेका दूसरा कोई उपाय नहीं था। किन्तु प्रमाणानुगमके कथनमें यहां इतना विशेष और कहना चाहिये कि अपकर्षण-उत्कर्षणके द्वारा जो द्रव्य अन्यत्र प्राप्त होता है वह फिरसे वहीं आ जाता है, इसलिये यथानिषेकस्थितिप्राप्तके द्रव्यसे इसका द्रव्य इतना विशेष अधिक होता है।।
विशेषार्थ—यथानिषेकस्थितिप्राप्तका जो संचयकाल और स्वामी पहले बतला आये हैं वही निषेकस्थितिप्राप्तका भी प्राप्त होता है, क्योंकि उत्कृष्ट संचय सातवें नरकमें उक्त प्रकारसे ही बन सकता है। तथापि यथानिषेकस्थितिप्राप्तसे इसका उत्कृष्ट द्रव्य विशेष अधिक हो जाता है। कारण यह है कि यथानिषेकस्थितिप्राप्तमें अपकर्षण-उत्कर्षणके द्वारा जितना द्रव्य कम हो जाता है वह यहां पुनः बढ़ जाता है ।
६६५४. अब यथावसर प्राप्त उत्कृष्ट उदयस्थितिप्राप्तके स्वामित्वका कथन करनेकी इच्छासे पृच्छा सूत्र कहते हैं
* उत्कृष्ट उदयस्थितिप्राप्त द्रव्यका स्वामी कौन है ।
६६५५. इस सूत्रमें मिथ्यात्वप्रकृतिका अधिकार होनेसे 'मिच्छत्तस्स' इस पदका सम्बन्ध कर लेना चाहिये । शेष कथन सुगम है।
* जो गुणितकौशवाला जीव संयमासंयमगुणश्रेणि और संयमगुणश्रेणिको
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