Book Title: Kasaypahudam Part 07
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 411
________________ जयधवलास हिदे कसायपाहुडे [ पदेसविहत्ती ५ समयूणबंधावलियं च एकदो मेलाविय एदाहि समयूणदो आवलियाहि परिहीणजहण्णावाहमेत तदित्थणिसेयस्स ओकड्ड कडुणकालो होइ ति भणिदं । ३८४ १६३१. संपहि एदमेत्तियका लण्ड दव्वमिच्छिय सयलेयसमयपबद्धं ठविय एदस्स हेडा दिवगुणहाणिप दुष्पण्णमोक ड्डुकड्डुणभागहारं समयूणदो आवलियूणजहाबाहा ओट्टिय विसेसाहियं काऊण भागहारभावेण द्वविदे णासेसदव्वमागच्छइ । पुणो णद्वसेसमधाणिसे यदव्वमिच्छामो त्ति एयसमयपबद्धं उवेयूण सादिरेयदिवडूगुणहाणिमेत्तभागहारे ठविदे णासिदसेसदव्त्रमागच्छइ । एदं च पढमणिसेओ ति मणेण संकप्पिय पुत्र हवेयव्वं । एगसमयुत्तरजहण्णावाहाए ठाइदूण बद्धसमयपबद्धस्स जहाणिसेयपमाणपरूवणा गदा । ९ ६३२. दुसमयुत्तरजहण्णावाहाए ठाइदूण बद्धसमयपबद्धस्स वि एवं चैव परूत्रणा कायन्त्रा । णवरि पढमणिसेयमोकड्ड कड्डणभागहारेण खंडिय तत्थेयखंडेण विदियणिसेओ हो होइ, एयवारमोकडकड्डणाए पत्ताहियघादत्तादो । एदं च विसेसहीणदव्वं पुव्विल्लदव्वस्स पासे विदियणिसेओ ति पुत्र उत्रेयच्वं । एवं तिसमयुत्तरावाहाबद्ध समयपबद्धप्प हुडि हेट्ठा ओदारिदूण एगेगणिसेयं पुण्यभागहारेण विसेसहीणं काऊण दव्वं जाव ओकड्ड कड्डुणभागहारमेत्तद्धाणे ति । एदं चेव उदयावलिको और पूर्वोक्त एक समय कम बन्धवलिको एकत्रित करने पर इन एक समय कम दो आवलियोंसे न्यून जघन्य आवाधाप्रमाण वहाँके निषेकका अपकर्षण- उत्कर्षंणकाल होता है यह कहा है । $ ६३१. अब इतने कालके भीतर नष्ट हुए इस द्रव्यके लानेकी इच्छासे पूरे एक समयप्रबद्धको स्थापित करके इसके नीचे डेढ़ गुणहानिसे गुणित अपकर्षण- उत्कर्षण भागहार में एक समय कम दो आवलियोंसे न्यून जघन्य आबाधाका भाग देने पर जो लब्ध आवे उसे विशेषाधिक करके भागहाररूपसे स्थापित करने पर नष्ट हुए पूरे द्रव्यका प्रमाण आता है। फिर नष्ट होनेसे जो यथा निषेक द्रव्य बाकी बचा है उसे लानेकी इच्छा से एक समयबद्धको स्थापित करके और उसके नीचे साधिक डेढ़ गुणहानिप्रमाण भागहार के स्थापित करने पर नाश होनेसे बाकी बचे हुए द्रव्यका प्रमाण आता है । यहाँ यह जो बाकी बचे हुए द्रव्यका प्रमाण आया है इसे मनसे प्रथम निषेक मानकर अलग से स्थापित करे । इस प्रकार एक समय अधिक जघन्य बाधाको स्थापित करके बंधे हुए समयप्रबद्ध में जो यथानिषेकका प्रमाण प्राप्त होता है उसका कथन समाप्त हुआ । ९ ६३२. दो समय अधिक जघन्य आबाधाको स्थापित करके बंधे हुए समयबद्धका भी इसी प्रकार कथन करना चाहिये । किन्तु इतनी विशेषता है कि प्रथम निषेक में अपकर्षणउत्कर्षेणभागहारका भाग देनेसे वहाँ जो एक भाग प्राप्त हो दूसरा निषेक उतना हीन होता है, क्योंकि यहाँ अपकर्षण-उत्कर्षणभागहारका एकबार अधिक भाग दिया गया है। इस विशेष हीन द्रव्यको पूर्वोक्त द्रव्यके पासमें दूसरा निषेक मानकर पृथक् स्थापित करना चाहिये । इसी प्रकार तीन समय अधिक बाधाको स्थापित कर बद्धसमयप्रबद्धसे लेकर पीछे जाकर एक-एक निषेकको पूर्वोक्त भागहार द्वारा एक-एक भाग कम करके अपकर्षण- उत्कर्षणभागहारप्रमाण स्थानके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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