Book Title: Kasaypahudam Part 07
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ पदेसविहत्ती ५
९५६१. एदस्स चैवाणंतरपरुविदसामियस्स इत्थवेद संबंधीणि तिणि वि पयद जहण्णझीणडिदियाणि वत्तव्वाणि । णवरि तिपलिदोवमिएस अणुववण्णस्स काव्वाणि । कुदो ? तत्थ णकुंसयवेदस्सेव इत्थिवेदस्स बंधबोच्छेदाभावेण तत्थुपायणे फलावलं भादो |
३४०
'सयवेदस्स जहरणयमुदयादो की हिदियं कस्स ?
९५६२. सुगमं ।
जाव
* सुहुमणिगोदे कम्म हिदिमणुपालियूण तसेसु श्रागदो । संजमासंजमं संजमं सम्मत्तं च बहुसो गओ । चत्तारि वारे कसाए उवसामित्ता तदो एइंदिए गदो । पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमच्छिदो ताव उवसामय समयपबद्धा पिग्गलिदा त्ति । तदो पुणो मगुस्सेसु आगदो । पुव्वकोडी देसूर्ण संजममणुपालियूण अंतोमुहुत्त सेसे मिच्छत्तं गदो । दसवस्ससहस्सिएस देवेसु उववरणो । अंतो मुहुत्तमुववरणेण सम्मत्तं लद्धमंतोमुहुत्ताबसेसे जीविदsar त्ति मिच्छत्तं गदो । तदो विकडिदाओ हिंदीओ तप्पा ओग्गसव्वरहस्साए मिच्छत्तद्धाए एइंदिएसुबवण्णो । तत्थ वि
६५६१ यह जो अनन्तर जघन्य स्वामी कह आये हैं उसके ही स्त्रीवेद सम्बन्धी तीनों प्रकृत जघन्य कीनस्थितिक द्रव्य कहना चाहिये । किन्तु तीन पल्यकी आयुवालोंमें उत्पन्न नहीं हुए tad यह सब विधि बतलानी चाहिये, क्योंकि तीन पल्यकी आयुवालोंमें जैसे नपुंसकवेदकी बन्धव्युच्छित्ति पाई जाती है वैसे स्त्रीवेदकी बन्धव्युच्छित्ति नहीं पाई जाती, इसलिये वहाँ उत्पन्न कराने में कोई लाभ नहीं है ।
* नपुंसकवेदके उदयसे झीनस्थितिवाले जघन्य द्रव्यका स्वामी कौन है ? ९५६२ यह सूत्र सुगम है ।
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* जो जीव सूक्ष्म निगोदियोंमें कर्मस्थिति प्रमाणकाल तक रहकर त्रसोंमें आया है । फिर जिसने अनेक बार संयमासंयम, संयम और सम्यक्त्रको करके चार बार कषायका उपशम किया है । फिर एकेन्द्रियोंमें जाकर उपशामकसम्बन्धी समयबद्धों के गलने में लगनेवाले पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण कालतक वहाँ रहा । फिर मनुष्योंमें आकर और कुछ कम एक पूर्वकोटि काल तक संयमका पालन करते हुए जब अन्तर्मुहूर्त काल शेष बचा तब मिथ्यात्व में गया । फिर दस हजार वर्षकी युवाले देवोंमें उत्पन्न हुआ और उत्पन्न होने के अन्तर्मुहूर्त बाद सम्यक्त्वको प्राप्त किया तथा जब आयु में अन्तर्मुहूर्त बाकी बचा तब मिथ्यात्वको प्राप्त हुआ । और वहाँ सम्यक्त्वकी अपेक्षा स्थितियों को बढ़ाकर तत्प्रायोग्य सबसे जघन्य मिथ्यात्वका काल शेष रहनेपर एकेन्द्रियोंमें उत्पन्न हुआ । फिर वहाँ तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट संक्लेशको प्राप्त हुआ वह
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