Book Title: Kasaypahudam Part 07
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ पदेसविहत्ती ५ पाओग्गजहण्णसंतकम्मेणागंतूण तसेमुप्पज्जिय तिपलिदोवमिएसुप्पज्जमाणो तम्मि संधीए पलिदोवमस्स असंखेजदिभागमेत्तगुणसेडिणिज्जराकालभंतरे सेसकम्माणं व संजमासंजमादिकंडयाणि थोवूणाणि कादूण पुणो तत्थ जाणि परिसेसिदाणि ताणि वेछावहिसागरोवमभंतरे कत्थ वि कत्थ कि विक्खित्तसरूवेण करेदि त्ति एसो एत्थ परिणिच्छओ, मुत्तस्सेदस्स अंतदीपयत्तादो ।
६५५६. अत्रैवावान्तरव्यापारविशेषप्रतिपादनार्थमुत्तरसूत्रावयवः-चत्तारि वारे कसाए उवसामित्ता अपच्छिमे भवे पुव्वकोडिआउओ मणुस्सो जादो इदि । पलिदोवमासंखेजदिभागमेत्तसंजमासंजमादिकंडयाणमसंजमकंडयाणं च अंतरालेसु समयाविरोहेण चत्तारि कसाउवसामणवारे गुणसेढिणिज्जराविणाभावितेण पयदोवजोगी अणुपालिय चरिमदेहहरो दीहाउओ मणुसो जादो ति वुत्तं होइ । ण पुव्वकोडाउए उप्पादो णिरत्थओ, गुणसे ढिणिज्जराविणाभाविदीहसंजमाए पयदोवजोगितादो त्ति तस्स सहलत्तपदंसणहमुवरिमो मुत्तावयवो-तदो देसूणपुवकोडिसंजममणुपालियूणे ति । एत्थ देसूणपमाणमहवस्साणि अंतोमुहुत्तब्भहियाणि । एवं देसूणपुवकोडिसंजमगुणसेढिणिज्जरं काऊणावहिदस्स आसण्णे सामित्तसमए वाचारविसेसपदुप्पायणहमंतोमुहुत्तसेसे परिणामपच्चएण असंजमं गदो ति उत्तं ।
५६०. एत्थुद्देसे असंजमगमणे फलं परूवेइ-ताव असंजदो जाव गुणसेढी योग्य जघन्य सत्कर्मके साथ आकर और बसोंमें उत्पन्न होकर तीन पल्यकी आयुवालोंमें उत्पन्न होनेकी स्थितिमें होता है तब इस मध्यकाल में पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणश्रेणिनिर्जरा कालके भीतर शेष कर्मों के समान कुछ कम संयमासंयमादि काण्डकोंको करके फिर वहाँ जो कम शेष बचते हैं उन्हें दो छयासठ सागर कालके भीतर कहीं कहीं त्रुटित (विक्षिप्त) रूपसे करता है इस प्रकार यहाँ यह निश्चय करना चाहिये, क्योंकि यह सूत्र अन्तदीपक है ।
६५५९. अब यहीं पर अवान्तर व्यापारविशेषका कथन करनेके लिये सूत्रका अगला हिस्सा आया है कि चार बार कषायोंका उपशम करके अन्तिम भवमें पूर्वकोटिकी आयुवाला मनुष्य हुआ। इसका आशय यह है कि पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण संयमासंयम आदि काण्डकोंके और आठ संयम काण्डकोंके अन्तरालमें आगममें जो विधि बतलाई है उस विधिसे गुणश्रेणिनिर्जराका अविनाभावी होनेसे प्रकृतमें उपयोगी चार कषायोंके उपशामन वारोंको करके बड़ी आयुवाला चरमशरीरी मनुष्य हुआ। यदि कहा जाय कि एक पूर्वकोटिकी आयुवाले मनुष्यमें उत्पन्न कराना व्यर्थ है सो भी बात नहीं है, क्योंकि संयमकालका बड़ापन गुणनेणि निर्जराका अविनाभावी होनेसे प्रकृतमें उसका उपयोग है, इसलिये इसकी सफलता दिखलाने के लिये सूत्रके आगेका 'तदो देसूणपुत्वकोडिसंजममणुपालियूण' यह हिस्सा रचा गया है। यहाँपर देशोनका प्रमाण अन्तर्मुहूर्त अधिक आठ वर्ष है। इस प्रकार कुछ कम पूर्वकोटि कालतक संयमगुणश्रेणिनिर्जराको करके स्थित हुए जीवके विवक्षित स्वामित्व समयके समीपमें आ जानेपर व्यापारविशेषको बतलानेके लिये 'जो अन्तर्मुहूर्त कालके शेष रहनेपर परिणामोंकी परवशताके कारण असंयमको प्राप्त हुआ' यह कहा है।
६५६०. अब यहाँ असंयमको प्राप्त होनेका प्रयोजन कहते हैं-यह जीव तबतक असंयत
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