Book Title: Kasaypahudam Part 07
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[पदेसविहत्ती ५ ® एवं सम्मामिच्छत्तस्स । ५४८. सुगममेदमप्पणासुतं ।
ॐ गवरि पढमसमयसम्मामिच्छाइहिस्स प्रावलियसम्मामिच्छाइहिस्स चेदि।
५४६. दोसु वि सामित्तमुत्तेसु आलावको विसेसो जाणियव्यो ।
* अहकसाय चउसंजलण-पुरिसवेद-हस्स-रदि-भय-दुगुंछाणं जहण्णयमोकडणादो उक्कणादो संकमणादो च झीणहिदियं कस्स ?
$ ५५०. सुगममेदं ।
ॐ उवसंतकसाओ मदो देवो जादो तस्स पढमसमयदेवस्स जहरणयमोकडणादो उकड्डणादो संकमणादो च झीपहिदियं ।
१५५१. जो उवसंतकसाओ वीदरागछदुमत्थो अण्णदरकम्मंसियलक्खणेणागंतूण सेढिमारूढो कालगदसमाणो मदो देवो जादो तस्स पढमसमयदेवभावणावहियस्स
* इसी प्रकार सम्यग्मिथ्यात्वके विषयमें जानना चाहिये। ६५४८. यह अर्पणासूत्र सुगम है।
* किन्तु इतनी विशेषता है कि प्रथम समयवर्ती सम्यग्मिथ्याष्टिके और उदयावलिके अन्तिम समयवर्ती सम्यग्मिथ्यादृष्टिके जघन्य स्वामित्व कहना चाहिये ।
$ ५४९. दोनों ही स्वामित्व सूत्रोंमें व्याख्यानकृत विशेषता प्रकरणसे जान लेनी चाहिये ।
विशेषार्थ-जैसे सम्यक्त्व प्रकृतिकी अपेक्षा जघन्य स्वामित्वका कथन करते समय जीवको उपशमसम्यक्त्वसे वेदकसम्यक्त्वमें ले जाकर उसके प्रथम समयमें अपकर्षणादि तीनकी अपेक्षा और उदयावलिके अन्तिम समयमें उदयकी अपेक्षा झीनस्थितिवाले जघन्य कर्मपरमाणुओंका स्वामी कहा है वैसे ही उपशमसम्यक्त्वसे सम्यग्मिथ्यात्वमें ले जाकर उसके प्रथम समयमें अपकर्षणादि तीनकी अपेक्षा और उदयावलिके अन्तिम समयमें उदयकी अपेक्षा झीनस्थितिवाले जघन्य कर्मपरमाणुओंका स्वामी कहना चाहिये यह उक्त सूत्रका अभिप्राय है।
___ * आठ कषाय, चार संज्वलन, पुरुषवेद, हस्य, रति, भय और जुगुप्साके अपकर्षण, उत्कर्षण और संक्रमणकी अपेक्षा झीनस्थितिवाले जघन्य कर्मपरमाणुओंका स्वामी कौन है ?
६५५०. यह सूत्र सुगम है।
* जो उपशान्तकषाय जीव मरकर देव हो गया, प्रथम समयवर्ती वह देव उक्त प्रकृतियोंके अपकर्षण, उत्कर्षण और संक्रमणकी अपेक्षा झीनस्थितिवाले जघन्य कर्मपरमाणुओं का स्वामी है।
६५५१. क्षपितकांश या गुणितकांश इनमेंसे किसी भी एक विधिसे पाकर जो जीव उपशमश्रेणिपर चढ़कर उपशान्तकषाय वीतरागछद्मस्थ हो गया और फिर मरकर देव हो गया
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