Book Title: Kasaypahudam Part 07
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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गा० २२] पदेसविहत्तीए झीणाझीणचूलियाए समुक्कित्तणा
२३७ ४१६. एत्थ चत्तारि अणियोगद्दाराणि सुत्तसिद्धाणि । तं जहा-समुकित्तणा परूवणा सामित्तमप्पाबहुअं चेदि । तत्थ समुक्कितणा णाम मोहणीयसव्वपयडीणमुक्कडणादीहि चउहि झीणाझीणहिदियस्स पदेसग्गस्स अत्थित्तमेत्तपरूवगा। तप्परूवणहमुत्तरपुच्छामुत्तेण अवसरो कीरदे
* तं जहा।
४२०. सुगममेदं पुच्छासुतं ।
* अत्थि ओकडणादो झीणहिदियं उक्कड्डणादो झीणडिदियं संकमणादो झीणहिदियं उदयादो झीणहिदियं ।
__४२१. एत्थ ताव सुत्तस्सेदस्स पढममवयवत्थविवरणं कस्सामो। 'अस्थि'सद्दो आदिदीवयभावेण चउण्हं पि सुत्तावयवाणं वावओ ति पादेकं संबंधणिज्जो। भोकड्डणा णाम परिणामविसेसेण कम्मपदेसाणं हिदीए दहरीकरणं । तदो झीणा अप्पाओग्गभावेण अवहिदा हिदी जस्स पदेसग्गस्स तमोकड्डणादो झीणहिदियं अधिकारसे सम्बन्ध रहता है वे सब अधिकार चूलिका कहलाते हैं। प्रकृतमें प्रदेशविभक्तिका कथन किया जा चुका है किन्तु उसमें ऐसी बहुतसी बातें रह गई हैं जिनका निर्देश करना आवश्यक था । इसीकी पूर्ति के लिये झीनाझीन और स्थितिग ये दो चूलिका अधिकार आये हैं।
४१६. इस झीनाझीन नामक चूलिकामें चार अनुयोगद्वार हैं जो आगे कहे जानेवाले सूत्रोंसे ही सिद्ध हैं। वे ये हैं-समुत्कीर्तना, प्ररूपणा, स्वामित्व और अल्पबहुत्व । यहां समुत्कीर्तनाका अर्थ है मोहनीयकी सब प्रकृतियोंके उत्कर्षण श्रादि चारकी अपेक्षा झीनाझीन स्थितिवाले कम परमाणुओंके अस्तित्वमात्रका कथन करना। अब इसका कथन करनेके लिये आगेका पृच्छासूत्र कहते हैं
* जैसे६ ४२०. यह पृच्छासूत्र सुगम है।।
* अपकर्षणसे झीन स्थितिवाले कर्मपरमाणु हैं, उत्कर्षणसे झीन स्थितिवाले कर्मपरमाणु हैं, संक्रमणसे झीन स्थितिवाले कर्मपरमाणु हैं और उदयसे झीन स्थितिवाले कर्मपरमाणु हैं। आशय यह है कि ऐसे भी कर्मपरमाणु हैं जिनका अपकर्षण नहीं हो सकता, ऐसे भी कर्मपरमाणु हैं जिनका उत्कर्षण नहीं हो सकता, ऐसे भी कर्मपरमाणु हैं जिनका संक्रमण नहीं हो सकता और ऐसे भी कर्मपरमाणु हैं जो उदयप्राप्त होनेसे जिनका पुनः उदय नहीं हो सकता । . ६४२१. यहां अब सबसे पहले इस सूत्रमें जो 'अस्ति' पद आया है उसका खुलासा करते हैं। 'अस्ति' पद आदिदीपक होनेसे वह सूत्रके चारों ही अवयवोंसे सम्बन्ध रखता है, इसलिये उसे प्रत्येक अवयवके साथ जोड़ लेना चाहिये।
ओकड्डणादो झीणहिदियं -- परिणामविशेषके कारण कर्मपरमाणुओंकी स्थितिका कम करना अपकर्षणा है। जिन कर्मपरमाणुओंकी स्थिति अपकर्षणसे झीन अर्थात् अपकर्षणके अयोग्य रूपसे स्थित है वे अपकर्षणसे झीन स्थितिवाले कर्मपरमाणु हैं। यह अवस्था यथायोग्य
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