Book Title: Kasaypahudam Part 07
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
View full book text
________________
गा० २२] पदेसविहत्तीए झीणाझीणचूलियाए परूवण
२५५ ४३२. तिस्से चेव णिरुद्धहिदीए अण्णं पि पदेसरगमोकड्डणादो परिहीणहिदियमत्थि ति परूवणहमुवरिममुत्तमोइण्णं
___ तस्सेव पदेसग्गस्त जइ वि दुसमयाहियाए आवलियाए ऊणिया कम्महिदी विदिक्कंता तं पि उक्कड्डणादो झीणहिदियं ।
४३३. सुगम । किमहमेक्किस्से परिमाणंतरहिदीए ण उक्कड्डि जइ तं पदेसग्गं ? ण, जहण्णाबाहादीहाए अइच्छावणाए अभावादो । ण च आवाहाए अब्भंतरे उक्कड्डणस्स संभवो, 'बंधे उक्कड्डदि' ति वयणादो। ण हि अहिणववज्झमाणपरमाणू आबाहाए अभंतरे अस्थि, विरोहादो। कम एक प्रावलिप्रमाण बतलाई है, इसलिये अतिस्थापनारूप द्रव्यमें उत्कर्षित द्रव्यका निक्षेप नहीं होता।
४-व्याघात दशामें कमसे कम आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण अतिस्थापना और इतना ही निक्षेप प्राप्त होनेपर उत्कर्षण होता है, अन्यथा नहीं होता।
___ जहाँ अतिस्थापना एक आवलि और निक्षेप आवलिका असंख्यातवाँ भाग आदि बन जाता है वहाँ निर्व्याघात. दशा होती है और जहाँ अतिस्थापनाके एक आवलिप्रमाण होनेमें बाधा आती है वहाँ व्याघात दशा होती है। जब प्राचीन सत्तामें स्थित कर्म परमाणुओंकी स्थितिसे नूतन बन्ध अधिक हो पर इस अधिकका प्रमाण एक आवलि और एक श्रावलिके असंख्यातवें भागके भीतर ही प्राप्त हो तब यह व्याघात दशा होती है। इसके सिवा उत्कर्षणमें सर्वत्र निर्व्याघात दशा ही जाननी चाहिये।
प्रकृतमें जिन कर्मपरमाणुओंके उत्कर्षणका निषेध किया है उनसे सम्बन्ध रखनेवाले समयप्रबद्धकी कर्मस्थिति केवल एक समय अधिक एक श्रावलिमात्र ही शेष रही है, इसलिये इनका नियम नम्बर दो के अनुसार उत्कर्षण नहीं हो सकता, क्योंकि यहाँ जिन कर्मपरमाणुओंका उत्कर्षण विवक्षित है उनका कर्मपरमाणुओंसे सम्बन्ध रखनेवाले समयप्रबद्धकी कर्मस्थिति उतन शेष रही है, इसलिये उन कर्मपरमाणुओंमें शक्तिस्थितिका सर्वथा अभाव होनेसे उनका उत्कर्षण नहीं हो सकता।
६४३२. उसी विवक्षित स्थितिके अन्य कर्म परमाणु भी उत्कर्षणके अयोग्य हैं, अब इस बातका कथन करनेके लिये आगेका सूत्र आया है
___ * उन्हीं कर्मपरमाणुओंकी यदि दो समय अधिक एक आवलिसे न्यून शेष कर्मस्थिति व्यतीत हो गई है तो वे कर्मपरमाणु भी उत्कर्षणसे झीन स्थितिवाले हैं।
६४३३. यह सूत्र सुगम है ।
शंका-अपनेसे ऊपरकी अनन्तरवती एक स्थितिमें उन कर्मपरमाणुओंका उत्कर्षण क्यों नहीं होता ?
समाधान-नहीं, क्योंकि वहाँ जघन्य आवाधाप्रमाण अतिस्थापना नहीं पाई जाती और आवाधाके भीतर उत्कर्षण हो नहीं सकता, क्योंकि 'बन्धके समय ही उत्कर्षण होता है' ऐसा आगमवचन है । यदि कहा जाय कि नूतन बंधनेवाले कर्म परमाणु आबाधाके भीतर पाये जाते हैं सो भी बात नहीं है, क्योंकि ऐसा माननेमें विरोध आता है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org