Book Title: Kasaypahudam Part 07
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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गा० २२]
उत्तरपयडिपदेसविहत्तीए बड्डीए कालो ४०३. मणुसाणं पंचिंदियतिरिक्स्वभंगो । णवरि सम्म० सम्मामि० असंखे०भागवड्डि-असंखे० गुणवडि० जहणुक० अंतोमुहुत्तं । अणंताणु०४ असंखे० गुणवडि० ज० एगस०, उक्क० अंतोमु० । छण्हमवत्त० अणंताणु०४ असंखे०गुणहाणि. पुरिस० अवहि. जह० एगस०, उक्क. संखेजा समया । खवगपदाणमोघं । मणुसपज्जत्तमणुसिणीसु एवं चेव। गवरि सम्म०-सम्मामि० असंखे० गुणहाणि० धुवबंधीणमवडि. जह० एगस०, उक्क० संखेज्जा समया । मणुसपज्ज० इत्थि० असंखे०गुणहाणि. गत्थि । मणुसिणी• पुरिस०-णस० असंखे०गुणहाणि० णस्थि ।
१४०४. मणुसअपज्ज० मिच्छ०-सोलसक०-भय-दुगुंडा० असंखे भागवडिहाणि० जह० एगस०, उक्क० पलिदो० असंखे० भागो । अहि. जह० एगस०, उक्क० आवलि० असंखे० भागो। सम्म-सम्मामि० असंखे० भागहाणि. जह० एगस०, उक्क० पलिदो० असंखे०भागो। असंखे गुणहाणि. जह० एगम०, उक्क० आवलि. असंखे०भागो । सत्तणोक. असंखे भागवडि-हाणि • जह० एगस०, उक्क० पलिदो. असंखे०भागो।
६४०५. देवगई. देवा० भवणादि जाव उपरिमगेवज्जा ति णारयभंगो । अणुदिसादि जाव सव्वहा ति मिच्छ०-सम्म०-सम्मामि०-इत्थि०-णधुंस० असंखे०
६४०३. मनुष्योंमें पञ्चेन्द्रिय तियंञ्चोंके समान भङ्ग है। इतनी विशेषता है कि सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यातभागवृद्धि और असंख्यातगुणवृद्धिका जवन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूत है । अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी असंख्यातगुणवृद्धिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। छहकी अवक्तव्यविभक्तिका, अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी असंख्यातगुणहानिका और पुरुषवेदकी अवस्थितविभक्तिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है। क्षपक पदोंका भा ओघके समान है। मनुष्य पर्याप्त और मनुष्यनियोंमें इसी प्रकार है। इतनी विशेषता है कि सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यातगुणहानिका तथा ध्रुवबन्धिनी प्रकृत्तियोंकी अवस्थितविभक्तिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है । मनुष्य पर्यातकोंमें स्त्रीवेदकी असंख्यातगुणहानि नहीं है। मनुष्यिनियों में पुरुषवेद और नपुंसकवेदकी असे ख्यातगुणहानि नहीं है ।
६४०४. मनुष्य अपर्यातकोंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय, भय और जुगुप्साकी असंख्यातभागवृद्धि और असंख्यातभागहानिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। अवस्थितविभक्तिका जयन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यातमागहानिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। असंख्यातगुणहानिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। सात नोकषायोंकी असंख्यातभागवृद्धि और असंख्यातभागहानिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है।
४०५. देवगतिमें देवोंमें तथा भवनवासियोंसे लेकर उपरिम वेयक तकके देवोंमें नारकियोंके समान भङ्ग है । अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंमें मिथ्यात्व, सम्यक्त्व,
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