Book Title: Kasaypahudam Part 07
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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गा० २२ ]
उत्तरपयडिपदेसविहत्तीए वड्डीए खेत्तं
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अवराइदा तिमिच्छ० सम्म० सम्मामि० - इत्थि० - बुंस० असंखे० भागहा • अनंताणु०४ असंखे ० भागद्दा ० - असंखे० गुणहा० बारसक- पुरिस०-भय- दुर्गुछा० असंखे ० भागवड्डिहाणि - अत्र द्वि० चदुणोक० असंखे० भागवड्डि-हा० केतिया असंखेज्जा | सव्व ०
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सव्वपय० सव्वपदा संखेज्जा । एवं जाव अणाहारि ति ।
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३२. खेत्ताणुगमेण दुविहो णिद्देसो- श्रघेण आदेसेण य । ओघेण मिच्छ अडक०-भय- दुगुंछा० असंखे ० भागवड्डि हा० - अवहि ० के ० खेते ? सव्वलोगे । भयदुगुंदवज्ज० असंखे० गुणहाणि० के० खेते ९ लोग० असंखे ० भागे । सम्म० - सम्मामि० सव्वपदा० लोग० असंखे० भागे । अनंताणु०४ मिच्छत्तभंगो | णवरि संखे० भागवडिसंखे० गुणवड्डि-- असंखे ० गुणवड्डि- हाणि अवत्त० लोग० असंखे० भागे । चदुसंज० असंखे० भागवडि-हाणि-अवद्वि० के० खेते ? सव्वलोगे । संखे० गुणवडि० लोभसंजलणं वज्ज० असंखे० गुणहाणि० लोग ० असंखे ० भागे । इत्थि० णवुंस० असंखे० भागवड्डिहाणि सव्वलोगे । असंखे० गुणहाणि० लोग • असंखे ० भागे । एवं पुरिस० । णवरि अवहि० - असं खे० गुणवडि० लोग० असंखे ० भागे । चदुणोक० असंखे० भागवड्डिहैं ? असंख्यात हैं । अनुदिशसे लेकर अपराजित विमान तकके देवों में मिध्यात्व, सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व, स्त्रीवेद और नपुंसकवेदकी असंख्यात भागहानिवाले, अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी असंख्यातभागहानि और असंख्यातगुणहानिवाले, बारह कषाय, पुरुषवेद, भय और जुगुप्साकी असंख्यात भागवृद्धि, असंख्यात भागहानि और अवस्थितविभक्तिवाले तथा चार नोकषायों की असंख्यातभागवृद्धि और असंख्यात भागहानिवाले जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं । सर्वार्थसिद्धिमें सब प्रकृतियोंके सब पदवाले जीव संख्यात हैं । इसीप्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए ।
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इसीप्रकार परिमाण समाप्त हुआ ।
६ ३९२. क्षेत्रानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है— श्रोध और आदेश । श्रघसे मिध्यात्व, आठ कषाय, भय और जुगुप्साकी असंख्यात भागवृद्धि, असंख्यात भागहानि और अवस्थितविभक्तिवाले जीवोंका कितना क्षेत्र है ? सब लोक क्षेत्र है । भय और जुगुप्साको छोड़कर असंख्तातगुणहानिवाले जीवोंका कितना क्षेत्र है ? लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्र है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व के सब पदवाले जीवोंका लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्र है । अनन्तानुबन्धीचतुष्कका भङ्ग मिध्यात्वके समान है । इतनी विशेषता है कि संख्यातभागवृद्धि, संख्यातगुणवृद्धि, असंख्यातगुणवृद्धि, असंख्यातगुणहानि और अवक्तव्यविभक्तिवाले जीवोंका क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भागप्रमण है। चार संज्वलनोंकी असंख्यात भागवृद्धि, असंख्यात भागहानि और अवस्थितविभक्तिवाले जीवोंका कितना क्षेत्र है ? सब लोक क्षेत्र है । संख्यातगुणवृद्धिवाले जीवों का और लोभसंज्वलन को छोड़कर शेषकी असंख्यातगुणहानिवाले जीवोंका लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्र है । स्त्रीवेद और नपुंसकवेदकी असंख्यात भागवृद्धि और असंख्यात भागहानिवाले जीवोंका क्षेत्र सब लोक है । असंख्यातगुणहानिवाले जीवोंका क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है । इसीप्रकार पुरुषवेदकी अपेक्षा क्षेत्र जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि अवस्थितविभक्ति और असंख्यातगुणवृद्धिवाले जीवोंका क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है । चार नोकषायों की
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