Book Title: Kasaypahudam Part 07
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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गा० २२] उत्तरपयडिपदेसविहत्तीए अप्पाबहुअपरूवणा
३२५६. एत्थ गुणगारो तेत्तीससागरोवमणाणागुणहाणिसलागाणंमण्णोण्णभत्थरासी संखेजरूवोवट्टिदोकड्ड क्कड्डणभागहारगुणिदो, असएिणपच्छायदपदमपुढविणेररइयम्मि वोलाविदपडिवक्खबंधगदम्मि पत्तजहएणभावचे अगलिदअंतोमुहुराणतेत्तीससागरोवममेत्तणिसेगस्स पुचिल्लादो तप्पडिवक्रवसहावादो तावदि गुणते विरोहागुवलंभादो।
ॐ हस्से जहएणपदेससंतकम्मं संखेज गुणं ।
$ २५७. एत्थ कारणं बधगदाए संखेजगुणतं । ण च बंधगदाणुरूवो ण होइ, विरोहादो।
ॐ रदीए जहण्णपदेससंतकम्मं विसेसाहियं । २५८. पयडिविसेसो एत्थ पच्चओ सुगमो । ® सोगे जहएणपदेससंतकम्म संखेजगुणं । $२५६. वंधगद्धावसेण । 8 अरदीए जहण्णपदेससंतकम्मं विसेसाहियं । $ २६०. पयडिविसेसवसेण ।
* दुगु छाए जहएणपदेससंतकम्मं विसेसाहियं ।
६२५६. यहाँ पर गुणाकारका प्रमाण अपकर्षण-उत्कर्षणभागहारमें संख्यातका भाग देकर जो लब्ध आवे उससे तेतीस सागरकी नामागुणहानिशलाकाओंकी अन्योन्याभ्यस्तराशिके गुणित करने पर जो गुणनफल प्राप्त हो उतना है, क्योंकि असंज्ञियोंमेंसे आकर पहली पृथिवीके नारकीमें प्रतिपक्ष प्रकृतिके बन्धककालके व्यतीत होने पर जघन्यपनेके प्राप्त होनेसे अन्तर्मुहूर्त कम तेतीस सागरप्रमाण इस निषेकका पहलके उसके प्रतिपक्ष स्वभाव निषेकसे उतना गुण होनेमें कोई विरोध नहीं आता है।
* उससे हास्यमें जघन्य प्रदेशसत्कर्म संख्यातगुणा है ।
६२५७. इसका कारण बन्धक कालका संख्यात होना है। और बन्धककालके अनुरूप सञ्चय नहीं होता है यह बात नहीं है, क्योंकि बन्धककालके अनुरूप सञ्चय नहीं होने पर विरोध आता है।
* उससे रतिमें जघन्य प्रदेशसत्कर्म विशेष अधिक है। ६२५८. प्रकृतिविशेष ही यहाँ पर कारण है, इसलिए वह सुगम है । * उससे शोकमें जघन्य प्रदेशसत्कर्म विशेष अधिक है। । २५६. क्योंकि उसका कारण बन्धककाल है।। * उससे अरतिमें जघन्य प्रदेशसत्कर्म विशेष अधिक है ६२६०. क्योंकि इसका कारण प्रकृतिविशेष है। * उससे जुगुप्सामें जघन्य प्रदेशसत्कर्म विशेष अधिक है ।
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