Book Title: Kasaypahudam Part 07
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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गा० २२) उत्तरपयडिपदेसविहत्तीए भुजगारे समुकित्तणा १३३
* लोभसंजलणे जहएणपदेससंतकम्मं विसेसाहियं । $ २८५. सुगमं ।
एदेण देसामासियदंडएण मूचिदसेसासेसमग्गणाओ अणुमग्गिदव्याओ जाव अणाहारि ति ।
एवमप्पाबहुअं समत्तं । ॐ एत्तो भुजगारं पदणिक्खेव वड्डीओ च कादव्वायो ।
६२८६. एत्तो उवरि भुजगारं परूविय तदो पदणिक्खेव-बड्डीओ कायवाओ त्ति उवरिमाणंतरसुत्तावकरयो सुत्तत्थसंबंधो कायव्यो । संपहि एदस्स अत्थसमप्पणासुत्तस्स सूचिदासेसपरूवणस्स दवटियणयावलंबिसिस्साणुग्गहकारिणो भगवदीए उच्चारणाए पसाएण पज्जवडियपरूवणं भणिस्सामो । तं जहा-भुजगारविहत्तीए तत्थ इमाणि तेरसाणियोगदाराणि - समुक्त्तिणा जाव अप्पाबहुए त्ति । तत्थ समुक्कित्तणाणुगमेण दुविहो गिद्दे सो-ओघेण आदेसेण य । तत्थ ओघेण मिच्छत्त-बारसक०पुरिस-भय-दुगुंछाणमत्थि भुज० अप्प० अवहिदविहत्तियो। सम्म०-सम्मामि० अत्थि. भुज. अप० अवत्तव्यमवहिदं च । अणंताणुबंधिचउक्कस्स अस्थि भुज० अप्प० अवहिद० अवत्तव्वं । इत्थिवेद०-णबुंसय०-हस्स-रइ-अरइ-सोगाणमत्थि भुज० अप्प०विहत्तिओ। अवहिदं च उवसमसेढीए । एवं सव्वणेरइय--सव्वतिरिक्ख
* उससे लोभसंज्वलनमें जघन्य प्रदेशसत्कर्म विशेष अधिक है ।
६ २८५. ये सूत्र सुगम हैं। इस देशामर्षकदण्डकका अवलम्बन लेकर अनाहारक मार्गणा तक समस्त मार्गणाओंका अनुमागंण करना चाहिए।
इस प्रकार अल्पबहुत्व समाप्त हुआ। * इससे आगे भजगार, पदनिक्षेप और वृद्धि करनी चाहिए ।
२८६. इससे आगे भुजगारका कथन करके अनन्तर पदनिक्षेप और वृद्धिका कथन करना चाहिए इस प्रकार उपरिम अनन्तर सूत्रकी अपेक्षा करके इस सूत्रके अर्थका सम्बन्ध करना चाहिए। अब समस्त प्ररूपणाओंको सूचन करनेवाले और द्रव्यार्थिक नयका अवलम्बन करनेवाले शिष्योंका अनुग्रह करनेवाले और मुख्यरूपसे अधिकारका सूचन करनेवाले इस सूत्रकी भगवती उच्चारणाके प्रसादसे विशेष प्ररूपण करते हैं। यथा-भुजगार विभक्तिमें ये तेरह अनुयोगद्वार होते हैं-समुत्कीर्तनासे लेकर अल्पबहुत्व तक। उनमेंसे समुत्कीर्तनानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश। उनमेंसे ओघसे मिथ्यात्व, बारह कषाय, पुरुषवेद, भय और जुगुप्साकी भुजगार, अल्पतर और अवस्थितविभक्ति है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी भुजगार, अल्पतर, अवस्थित और अवक्तव्यविभक्ति है। स्त्रीवेद, नपुंसकवेद, हास्य, रति, अरति और शोककी भुजगार और अल्पतरविभक्ति है। तथा उपशमश्रेणिमें अवस्थितविभक्ति है। इसी प्रकार सब नारकी, सब तिर्यञ्च, सब मनुष्य, देव और भवनवासियोंसे लेकर उपरिम
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