Book Title: Kasaypahudam Part 07
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ पदेसविहत्ती ५
केव० फोसिदं ? लोग० श्रसंखे० भागो पंचचोदस० । पढमपुढवीए खेत्तभंगो । विदियादि जाव सत्तमित्ति एवं चेव । णवरि अपणो रज्जूओ फोसणं कायव्वं । सत्तमाए सम्म० - सम्मामि० अवधि० खेत्तभंगो ।
३१६. तिरिक्खगईए तिरिक्खेहि मिच्छ० - सोलसक० -भय-दुर्गुछ० भुज० - अप्प ० - अवद्वि० केव० फोसिदं । सव्वलोगो । अनंताणु० चउक्क० अवत्त० सम्म०सम्मामि० ० भुज० अवत्त० केव० फोसिदं ? लोग० असंखे० भागो । सम्म० सम्मामि० अप्प ० लोग • असंखे ० भागो सव्वलोगो वा । अवद्वि० लोग० असंखे० भागो सत्तचोद्दस० । सत्तणोक० भुज० अप्प० के० फोसिदं । सव्वलोगो । वरि पुरिस raft • लोगस्स असंखे ० भागो ।
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क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और त्रसनालीके कुछ कम पाँच बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। पहली पृथिवीमें क्षेत्र के समान भङ्ग है । दूसरीसे लेकर सातवीं तक के नारकियों में इसीप्रकार भङ्ग है । इतनी विशेषता है कि अपने अपने राजुत्रोंमें स्पर्शन करना चाहिए। तथा सातवीं पृथिवी में सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी अवस्थितविभक्तिवाले जीवों का स्पर्शन क्षेत्र के समान है ।
विशेषार्थ - यहाँ सामान्य नारकियों में जिन प्रकृतियोंके जिन पदोंका स्पर्शन उपपादपद या मारणान्तिक पदके समय सम्भव है उनका वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाख और अतीत स्पर्शन त्रसनालीके कुछ कम छह बटे चौदह भागप्रमाण कहा है। तथा शेष पदोंका स्पर्शन मात्र लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण कहा है। मात्र सासादनसम्यग्दृष्टि नारकी जीव छठवें नरकतक के ही मरकर अन्य गतिमें उत्पन्न होते हैं, इसलिए सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व के अवस्थित पदवाले जीवोंका वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और अतीत स्पर्शन त्रसनालीके कुछ कम पाँच बटे चौदह भागप्रमाण कहा है। तथा सातवीं पृथिवीका सासादनसम्यग्दृष्टि मरकर अन्य गतिमें नहीं जाता, इसलिए इसमें उक्त दोनों प्रकृतियोंके अवस्थित पदवाले जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान जाननेकी सूचना की है। शेष कथन सुगम है।
३१. तिर्यगति में मिथ्यात्व, सोलह कषाय, भय और जुगुप्साकी भुजगार, अल्पतर और अवस्थितविभक्तिवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी अवक्तव्यविभक्तिवाले जीवोंने तथा सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी भुजगार और अवक्तव्यविभक्तिवाले जीवोंने तिने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी अल्पतरविभक्तवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । इनकी अवस्थितविभक्तिवाले जीवोंने लोक के असंख्यातवें भागप्रमाण और त्रसनालीके कुछ कम सात ब` चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । सात नोकषायोंकी भुजगार और अल्पतरविभक्तिवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । इतनी विशेषता है कि पुरुषवेदकी अवस्थितविभक्तिवाले जीवोंने लोक के असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है ।
विशेषार्थ - सासादन तिर्योंके ऊपर एकेन्द्रियोंमें मारणान्तिक समुद्धात करते समय सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी अवस्थितविभक्ति सम्भव होनेसे इनके उक्त पदवाले जीवोंका
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