Book Title: Kasaypahudam Part 07
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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गा० २२] उत्तरपयडिपदेसविहत्तीए भुजगारे अप्पाबहुअं।
$ ३३६. अप्पाबहुआणुगमेण दुविहो गिद्दे सो-ओघेण आदेसेण य । ओघेण मिच्छ०-बारसक०-भय-दुगुंछाणं सव्वत्थोवा अवहिदविहत्तिया । अप्पद० असंखे०गुणा । भुज० संखे०गुणा । सम्म०-सम्मामि० सव्वत्थोवा अवहि० । अवत्त० असंखे० गुणा। भुज० असंखे० गुणा। अप्प० असंखे० गुणा। अणंताणु० चउक्कस्स सव्वत्थोवा अवत्त । अवहि अगा : सेसं मिच्छत्तभंगो । इत्थि०-हस्स-रईणं सव्वत्थोवा अवहि । भुज. अणंतगुणा । अप्प० संखे० गुणा । णवंसय०-अरदि-सोगाणं सव्वत्थोवा अवहि । अप्प० अणंतगुणा । भुज० संखे गुणा। पुरिसवेदस्स सव्वत्थोवा अवहि । भुज. अणंतगुणा । अप्प० संखे०गुणा । एवं तिरिक्खोघो। णवरि छण्णोक० अवहि० णत्थि ।
___३३७. आदेसेण णेरइय० अणंताणु चउक्कस्स सव्वत्थोवा अवत्त । अवहि० असंखे० गुणा । अप्प. असंखे० गुणा । भुज० संखे०गुणा । पुरिस० सव्वत्थोवा अवहिः । भुज० असंखे० गुणा । अप्प० संखे०गुणा । सेसाणमोघो । णवरि छण्णोक० अवहि० गत्थि । एवं सव्वणेरइय-पंचिंदियतिरिक्खतिय-मणुस्सोघं देवगदीए देवा भवणादि जाव सहस्सार त्ति । णवरि मणुस्सेम सम्म०-सम्मामि० सव्वत्थोवा अवहि।
६३३६. अल्पबहुत्वानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे मिथ्यात्व, बारह कषाय, भय और जुगुप्साकी अवस्थितविभक्तिवाले जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे अल्पतरविभक्तिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे भुजगारविभक्तिवाले जीव संख्यातगुणे हैं। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी अवस्थितविभक्तिवाले जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे अवक्तव्यविभक्तिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे भुजगारविभक्तिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं । उनसे अल्पतरविभक्तिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं । अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी अवक्तव्यविभक्तिवाले जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे अवस्थितविभक्तिवाले जीव अनन्तगुणे हैं। शेष भङ्ग मिथ्यात्वके समान है। स्त्रीवेद, हास्य और रतिके अवस्थितविभक्तिवाले जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे भुजगारविभक्तिवाले जीव अनन्तगुणे हैं। उनसे अल्पतरविभक्तिवाले जीव संख्यातगुणे हैं। नपुंसकवेद, अरति और शोकके अवस्थितविभक्तिवाले जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे अल्पतरविभक्तिवाले जीव अनन्तगुणे हैं। उनसे भुजगारविभक्तिवाले जीव संख्यातगुणे हैं ! पुरुषवेदके अवस्थितविभक्तिवाले जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे भुजगारविभक्तिवाले जीव अनन्तगुणे हैं। उनसे अल्पतरविभक्तिवाले जीव संख्यातगुणे हैं। इसीप्रकार सामान्य तिर्यञ्चोंमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनमें छह नोकषायोंका अवस्थितपद नहीं है।।
६३३७. श्रादेशसे नारकियोंमें अनन्तानुबन्धीचतुष्कके अवक्तव्यविभक्तिवाले जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे अवस्थितविभक्तिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे अल्पतरविभक्तिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे भुजगारविभक्तिवाले जीव संख्यातगुणे हैं। पुरुषवेदके अवस्थितविभक्तिवाले जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे भुजगारविभक्तिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे अल्पतरविभक्तिवाले जीव संख्यातगुणे हैं। शेष प्रकृतियोंका भङ्ग ओघके समान है। इतनी विशेषता है कि छह नोकषायोंका अवस्थितपद नहीं है। इसीप्रकार सब नारकी, पश्चन्द्रिय तिर्यश्चत्रिक, सामान्य मनुष्य, देवगतिमें देव और भवनवासियोंसे लेकर सहस्रार कल्प तकके
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