Book Title: Kasaypahudam Part 07
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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गा० २२] उत्तरपयडिपदेसविहत्तीए वड्डीए समुक्वित्तणा
१८७ पत्थि । अणुदिसादि जाव सव्वहा ति बारसक०-पुरिस०-भय-दुगुंछा० जहण्णवडिहाणी अवहाणं सरिसं । मिच्छत्त-सम्मत्त-सम्मामि०-अणंताणु०४-इत्थि-णस० पत्थि अप्पाबहुअं । हस्स-रइ-अरइ-सोगाणं जहण्णवड्डी हाणी सरिसा । एवं जाव० ।
एवं पदणिक्खेवे त्ति समत्तं०। ६३५६. वडिविहत्ति त्ति तत्थ इमाणि तेरस अणिओगद्दाराणि-समुक्त्तिणा जाव अप्पाबहुए त्ति । समुकित्तणाणु० दुविहो णि.-ओघेण आदेसेण य । ओघेण मिच्छ०-अहक-पुरिस. अस्थि असंखे० भागवडि-हाणि-अवहिदाणि असंखे० गुणहाणी च । सम्म० सम्मामि० अत्थि असंखे भागवड्डी हाणी असंखे०गुणवड्डी हाणी अवत्त विहत्ती। अणंताणु०४ अत्थि असंखे भागवडी हाणी संखे० भागबड़ी संखे.. गुणवड्डी असंखे०गुणवडी हाणी अवहि. अवत्त विह० । चदुसंज. अत्थि असंखे०भागवड्डी हाणी संखे०गुणवड्डी असंखे०गुणहाणी अवहि विह० । णवरि लोभसंजल. असंखेज्जगुणहाणी पत्थि । इत्थि-णवूस. अस्थि असंखे०भागवडी हाणी असंखेगुणहाणिविह० । हस्स-रदि-अरदि-सोग. अत्थि असंखे० भागवड्डी हाणी । भय-दुगुंछ० अत्थि असंखे० भागवडी हाणी अवहि० । णवरि पुरिसवेद० संखे०गुणवडि-हाणी संखे० भागवडि-हाणी सम्म०-सम्मामि०-तिण्णिसंजल० संखे गुणहाणि-संखे० भागइतनी विशेता है कि उभयत्र अर्थात् दोनों अपर्याप्तकोंमें सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका अल्पबहुत्व नहीं है। अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धितकके देवोंमें बारह कषाय, पुरुषवेद, भय और जुगुप्साकी जघन्य हानि और अवस्थान समान हैं। मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धीचतुष्क, स्त्रीवेद और नपुंसकवेदका अल्पबहुत्व नहीं है। हास्य, रति अरति और शोककी जघन्य वृद्धि और हानि समान है । इस प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए।
इस प्रकार पदनिक्षेप अनुयोगद्वार समाप्त हुआ। ६३५६. वृद्धिविभक्तिका प्रकरण है। उसमें ये तेरह अनुयोगद्वार होते हैं-समुत्कीर्तनासे लेकर अल्पबहुत्व तक । समुत्कीर्तनानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश। ओघसे मिथ्यात्व, आठ कषाय और पुरुषवेदकी असंख्यातभागवृद्धि, असंख्यातभागहानि, अवस्थित और असंख्यातगुणहानि है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यातभागवृद्धि, असंख्यातभागहानि, असंख्यातगुणवृद्धि, असंख्यातगुणहानि और अवक्तव्यवृद्धि है। अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी असंख्यातभागवृद्धि, असंख्यातभागहानि, संख्यातभागवृद्धि, संख्यातगुणवृद्धि, असंख्यातगुणवृद्धि, असंख्यातगुणहानि, अवस्थितविभक्ति और अवक्तव्यविभक्ति है। चार संज्वलनोंकी असंख्यातभागवृद्धि, असंख्यातभागहानि संख्यातगुणवृद्धि, असंख्यातगुणहानि
और अवस्थितविभक्ति है । इतनी विशेषता है कि लोभसंज्वलनकी असंख्यातगुणहानि नहीं है। स्त्रीवेद और नपुंसकवेदकी असंख्यातभागवृद्धि, असंख्यातभागहानि और असंख्यातगुणहानिविभक्ति है। हास्य, रति, अरति और शोककी असंख्यातभागवृद्धि और असंख्यातभागहानि है । भय और जुगुप्साकी असंख्यातभागवृद्धि, असंख्यातभागहानि और अवस्थितविभक्ति है। इतनी विशेषता है कि पुरुषवेदकी संख्यातगुणवृद्धि, संख्यातगुणहानि, संख्यातभागवृद्धि और संख्यात
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