Book Title: Kasaypahudam Part 07
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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गा० २२] उत्तरपयडिपदेसविहत्तीए अप्पाबहुअपरूवणा
१३१ इत्थिवेदजहण्णसामिओं वेछावहिसागरोवमाणि भमादेयव्यो, तब्भमणे फलाणुवलंभादो। सो च कुदो ? वेछावहिसागरोवमाणि परिभमिय सम्मत्तादो परिवडिय इत्थिवेदं बंधमाणस्स पुरिसवेदादो अधापवत्तभागहारेण इत्थिवेदम्मि संकममाणदव्वस्स असंखेज्जपंचिंदियसमयपबद्धमेत्तस्स एइंदियपाओग्गजहण्णपदेससंतकम्मं पेक्खियूण असंखेजगुणत्तादो । तं पि कुदो णव्वदे ? अधापवत्तभागहारादो जोगगुणगारस्स असंखेजगुणत्तपरूवयमुत्तादो। तदो एइंदियसंचयस्स पाहणियादो बंधगद्धावसेण संखेजगुणत्तमविरुद्धं सिद्धं ।
* हस्से जहण्णपदेससंतकम्म संखज्जगुणं ।
६ २७७. कुदो ? इत्थिवेदबंधगद्धादो एइंदिएम हस्स-रइबंधगदाए संखेजगुणत्तादो।
® रदीए जहण्णपदेससंतकम्मं विसेसाहियं । ६ २७८. पयडिविसेसेण ।
® सोगे जहण्णपदेससंतकम्म संखेज्जगुणं । छयासठ सागर काल तक नहीं घुमाना चाहिए, क्योंकि उस कालके भीतर घुमानेमें कोई फल नहीं पाया जाता।
शंका--यह किस कारणसे है ?
समाधान--क्योंकि दो छयासठ सागर काल तक भ्रमण करके और सम्यक्त्वसे च्युत होकर स्त्रीवेदका बन्ध करनेवाले जीवके पुरुषवेदमेंसे अधःप्रवृत्तभागहारके द्वारा स्त्रीवेदमें संक्रमणको प्राप्त होनेवाला पञ्चन्द्रियके असंख्यात समयप्रबद्धप्रमाण द्रव्य एकेन्द्रियके योग्य जघन्य प्रदेशसत्कर्मको देखते हुए असंख्यातगुणा होता है।
शंका-वह भी किस प्रमाणसे जाना जाता है ?
समाधान-अधःप्रवृत्त भागहारसे योगगुणकार असंख्यातगुणा होता है ऐसा कथन करनेवाले सूत्रसे जाना जाता है।
इसलिए एकेन्द्रियके सञ्चयकी प्रधानता होनेसे बन्धक कालके वशसे पुरुषवेदके द्रव्यसे स्त्रीवेदका द्रव्य अविरोधरूपसे संख्यातगुण सिद्ध होता है।
* उससे हास्यमें जघन्य प्रदेशसत्कम संख्यातगुणा है।
६२७७. क्योंकि स्त्रीवेदके बन्धक कालसे एकेन्द्रियोंमें हास्य और रतिका बन्धक काल संख्यातगुणा है।
* उससे रतिमें जघन्य प्रदेशसत्कर्म विशेष अधिक है। $ २७८. क्योंकि यह प्रकृतिविशेष है। * उससे शोकमें जघन्य प्रदेशसत्कर्म संख्यातगुणा है ।
१. ता०प्रतौ 'ण एस दोसो इस्थिवेदजहएणसामियो' इति पाठः । २. ता०प्रतौ 'फलाणुवलंभादो चासो' इति पाठः।
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