Book Title: Kasaypahudam Part 07
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ पदेसविहत्ती ५ * मायाए उकस्सपदेससंतकम्मं विसेसाहियं । ___$ १८४. कुदो ? पयडिविसेसादो। केत्तियमेत्तेण? कोधदव्यमावलियाए असंखे०भागेण खंडेयूण तत्थेयखंडमेतेण । एदं कुदो णवदे ? परमगुरूणमुवदेसादो । ण चप्पलओं', णाणविण्णाणसंपण्णाणं तेसि भयवंताणं मुसाबादे पयोजणाभावादो ।
ॐ लोभे उकस्सपदेससंतकम्मं विसेसाहियं ।
$ १८५. कुदो, पयडिविसेसेण, पुव्वुत्तपमाणेण पयडि विसेसादो चेय एदस्स अहियत्तुवलंभादो।
* पञ्चक्खाणमाणे उक्कस्सपदेससंतकम्मं विसेसाहियं ।
१८६. जइ वि सम्वेसिं कसायाणमोघुक्कस्सपदेससंतकम्मसामियणेरइयचरजीवे पच्छायदपंचिंदियतिरिक्खभवग्गहणम्मि एइंदिएसुप्पण्णपढमसमए वट्टमाणम्मि अकमेण सामित्तं जादं तो वि विस्ससादो चेय पुबिल्लादो एदस्स विसेसाहियत्तं पडिवजेयव्वं, जिणाणमणण्णहावाइत्तादो। ण हि रागादिअविज्जासंघुम्मुक्का जिणिंदा वितथमुवइसंति, तेसु तकारणाणमणुवलद्धीए ।
8 कोहे उक्कस्सपदेससंतकम्म विसेसाहियं । * उससे अप्रत्याख्यान मायामें उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्म विशेष अधिक है ।
६ १८४. क्योंकि यह प्रकृतिविशेष है। कितना अधिक है ? क्रोधके द्रव्यमें आवलिके असंख्यातवें भागका भाग देने पर जो एक भाग लब्ध आवे उतना अधिक है।
शंका-यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ?
समाधान-परम गुरुके उपदेशसे जाना जाता है। परन्तु वे चपल नहीं हो सकते, क्योंकि ज्ञान-विज्ञान सम्पन्न भगवत्स्वरूप उनके मृषा भाषण करनेका कोई प्रयोजन नहीं है।
* उससे अप्रत्याख्यान लोभमें उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्म विशेष अधिक है।
६ १८५. क्योंकि यह प्रकृतिविशेष है, अतः प्रकृतिविशेष होनेके कारण ही इसका प्रमाण पूर्वोक्त प्रकृतिके प्रमाणसे अधिक पाया जाता है।
* उससे प्रत्याख्यान मानमें उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्म विशेष अधिक है।
१८६. यद्यपि सभी कषायोंका ओघसे उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्म नारकियोंके अन्तिम समयमें प्राप्त होता है, इसलिए वहाँसे पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चोंमें भव धारण करनेके बाद एकेन्द्रियोंमें उत्पन्न होने पर उसके प्रथम समयमें विद्यमान रहते हुए सबका एक साथ उत्कृष्ट स्वामित्व प्राप्त हुआ है तो भी स्वभावसे ही पहलेकी प्रकृतिसे इसका द्रव्य विशेष अधिक जानना चाहिए, क्योंकि जिनदेव अन्यथावादी नहीं होते। तात्पर्य यह है कि रागादि अविद्या संघसे रहित जिनेन्द्रदेव असत्य उपदेश नहीं करते, क्योंकि उनमें असत्य उपदेश करनेका कारण नहीं पाया जाता।
* उससे प्रत्याख्यान क्रोधमें उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्म विशेष अधिक है।
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१. प्रा०प्रतौ 'चफ्फलो ' इति पाठः। २. ता०प्रतौ 'वितस्थ (थ) मुवइसंति' प्रा. प्रतौ 'वितस्थमुवासंति' इति पाठः ।
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