Book Title: Kasaypahudam Part 07
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पदेसविहत्ती ५ * दुगु छाए उकस्सपदेससंतकम्मं विसेसाहिय।। $ २०१. धुवबंधित्तेण इत्थि-पुरिसवेदबंधगदासु वि संचउवलंभादो । * भए उकस्सपदेससंतकम्मं विसेसाहियं । $ २०२. कुदो ? पयडिविसेसादो । * पुरिसवेदे उकस्सपदेससंतकम्मं विसेसाहियं ।
२०३. केत्तियमेत्तेण ? भयदव्वमावलियाए असंखेज्जदिभाएण खंडेयूण तत्थेयखंडमेत्तेण । कुदो ? सोहम्मे सम्मत्तपहावेण धुवबंधित्ते संते पुरिसवेदस्स पयडिविसेसादो अहियत्तवलंभादो ।
* माणसंजलणे उकस्सपदेससंतकम्मं विसेसाहियं । $ २०४. के० मेत्तेण ? पुरिसवेददव्वचउब्भागमेत्तेण । सेसं सुगम ।
ॐ कोहे उकस्सपदेससंतकम्मं बिसेसाहियं ।
६ २०५. एत्थ पुग्विल्लमुत्तादो संजलणगहणमणुवट्टदे। पयडिविसेसादो च विसेसाहियत्तं । सेसं सुगमं । __ मायाए उकस्सपदेससंतकम्मं विसेसाहियं ।
* उससे जुगुप्सामें उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्म विशेष अधिक है।
६२०१. क्योंकि ध्रुवबन्धी होनेसे इसका स्त्रीवेद और पुरुषवेदके बन्धक कालोंमें भी सञ्चय उपलब्ध होता है।
* उससे भयमें उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्म विशेष अधिक है । ६३०२. क्योंकि यह प्रकृतिविशेष है। * उससे पुरुषवेदमें उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्म विशेष अधिक है ।
२०३. कितना अधिक है ? भयके द्रव्यमें श्रावलिके असंख्यातवें भागका भाग देनेपर जो एक भाग लब्ध आवे उतना अधिक है, क्योंकि सौधर्म कल्पमें सम्यक्त्वके प्रभावक्श पुरुषवेद ध्रुवबन्धी हो जाता है, इसलिए प्रकृतिविशेष होनेके कारण उसमें अधिक द्रव्य उपलब्ध होता है।
* उससे मानसंज्वलनमें उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्म विशेष अधिक है। $ २०४. कितना अधिक है ? पुरुषवेदके द्रव्यका एक चौथाई अधिक है। शेष कथन
सुगम है।
® उससे क्रोधसंज्वलनमें उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्म विशेष अधिक है।
६ २०५. यहाँ पर पूर्वके सूत्रमेंसे संज्वलन पदकी अनुवृत्ति होती है और प्रकृतिविशेष होनेके कारण इसका द्रव्य विशेष अधिक सिद्ध होता है। शेष कथन सुगम है।
* उससे संज्वलन मायामें उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्म विशेष अधिक है ।
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