Book Title: Kasaypahudam Part 07
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पदेसविहत्ती ५ ६६. खेत्ताणुगमो दुविहो-जहण्णओ उक्कस्सओ च । उकस्से पयदं । दुविहो णिहसो-ओघेण आदेसेण य । ओघेण छव्वीसं पयडीणमुक्क० पदे०विहत्तिया केवडि खेत्ते ? लोग० असंखे० भागे। अणुक्क० केव० ? सव्वलोगे । सम्म०सम्मामि० उक्क०-अणुक्क० पदे. केव० ? लोग० असंखे०भागे । एवं तिरिक्खाणं ।
७०. आदेसेण णेरइएमु अद्यावीसं पयडीणमुक्क०-अणुक्क० लोग० असंखे०भागे । एवं सव्वणेरइय-सव्वपंचिंदियतिरिक्ख-सव्वमणुस-सव्वदेवा ति । एवं णेदव्वं जाव अणाहारि ति ।
७१. जहण्णए पयदं । दुविहो णि सो--ओघेण आदेसेण य । ओघेण सव्वपयडीणं जह०-अज० उकस्साणुकस्सपदेभंगो। एवं सव्वमग्गणासु णेदव्वं ।
६६. क्षेत्रानुगम दो प्रकारका है-जघन्य और उत्कृष्ट। उत्कृष्टका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश। ओघसे छब्बीस प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिवाले जीवोंका कितना क्षेत्र है ? लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्र है। अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिवाले जीवोंका सर्व लोकप्रमाण क्षेत्र है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिवाले जीवोंका कितना क्षेत्र है ? लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्र है। इसी प्रकार तियञ्चोंमें जानना चाहिए।
विशेषार्थ-छब्बीस प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट प्रदेशविभक्ति संज्ञी पञ्चेन्द्रिय जीव करते हैं। और उनका क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है, इसलिए यहाँ ओघसे उक्त प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिवाले जीवोंका क्षेत्र लोकके असंख्वातवें भागप्रमाण कहा है। इनकी अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्ति उक्त प्रकृतियोंकी सत्तावाले शेष सब जीवोंके सम्भव है और उनका क्षेत्र सर्व लोक है, इसलिए यहां उक्त प्रकृतियोंकी अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिवाले जीवोंका सर्व लोकप्रमाण क्षेत्र कहा है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिवाले जीवोंका क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है यह स्पष्ट ही है। सामान्य तिर्यञ्चोंमें यह क्षेत्र घटित हो जानेसे उनमें श्रोघके समान जाननेकी सूचना की है।
६७०. आदेशसे नारकियोंमें अट्ठाईस प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातयें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इसी प्रकार सब नारकी, सब पञ्चन्द्रिय तिर्यञ्च, सब मनुष्य और सब देवोंमें जानना चाहिए। इस प्रकार अनाहारक मार्गणा तक ले जाना चाहिए।
विशेषार्थ-पूर्वोक्त सामान्य नारकी आदि उक्त मार्गणाओंका क्षेत्र ही लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है, इसलिए इनमें सब प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिवाले जीवोंका क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण कहा है। आगे अनाहारक मार्गेणा तक इसी प्रकार विचार कर क्षेत्र घटित किया जा सकता है, इसलिए उन मार्गणाओंमें उक्त क्षेत्रके समान जाननेकी सूचना की है।
६७१, जघन्यका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे सब प्रकृतियोंकी जघन्य और अजघन्य प्रदेशविभक्तिवाले जीवोंका क्षेत्र उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिवाले जीवोंके समान है। इसी प्रकार सब मार्गणाओंमें ले जाना चहिए।
विशेषार्थ ... सर्वत्र सब प्रकृतियोंकी जघन्य प्रदेशविभक्तिके स्वामित्वको देखनेसे
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