Book Title: Kasaypahudam Part 07
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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गा० २२] उत्तरपयडिपदेसविहत्तीए अप्पाबहुअपरूवणा
* कोघे उकस्सपदेससंतकम्मं विसेसाहियं ।
६१२४. पुब्बिल मुत्तादो अपञ्चक्वाणं ति अणुवट्टदे तेण अपञ्चक्रवाण-कोधे उक्कस्सपदेससंतकम्मं विसेसाहियं ति संबंधी कायव्वो। केतियमेत्तो विसेसो ? आवलि. असंखे० भागेण माणदव्वे खंडिदे तत्थ एयखंडमेत्तो। एदं कुदो णव्वदे ? मुत्ताविरोहिआइरियवयणादो।
मायाए उकस्सपदेससंतकम्मं विसेसाहियं ।।
$ १२५, जदि वि एकम्मि चेव द्वाणे पदेससंतकम्ममुक्कस्सं जादं तो वि कोधपदेसग्गादो मायापदेसग्गमावलियाए असंखे०भागपडिभागेण विसेसाहियं । कुदो ? - साहावियादो।
* लोभे उकस्सपदेससंतकम्मं विसेसाहियं । ६ १२६. केत्तियमेतेण ? आवलि० असंखे०भागपडिभागेण । * पञ्चक्खाणमाणे उकस्सपदेससंतकम्मं विसेसाहियं ।
१२७. के मेत्तेण ? आवलि. असंखे०भागेण लोभदव्वे खंडिदे तत्थ एयखंडमेत्तेण । कुदो ? पयडिविसेसादो।
ॐ उससे अप्रत्याख्यान क्रोधमें उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्म विशेष अधिक है।
६१२४. पूर्वोक्त सूत्रसे अप्रत्याख्यान इस पदकी अनुवृत्ति होती है, इसलिये अप्रत्याख्यान क्रोधमें उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्म विशेष अधिक है ऐसा सम्बन्ध करना चाहिए। विशेषका प्रमाण कितना है ? अप्रत्याख्यान मानके द्रव्यमें आवलिके असंख्यातवें भागका भाग देनेपर जो एक भाग लब्ध आवे उतना है।
शंका----यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ? समाधान-..सूत्राविरुद्ध आचार्यवचनसे जाना जाता है।
* उससे अप्रत्याख्यान मायामें उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्म विशेष अधिक है ।
६ १२५. यद्यपि एक ही स्थानमें प्रदेशसत्कर्म उत्कृष्ट हुआ है तो भी क्रोधके प्रदेशाग्रसे मायाका प्रदेशाग्र श्रावलिके असंख्यातवें भागका भाग देनेपर जो एक भाग लब्ध आवे उतना अधिक है, क्योंकि ऐसा स्वभाव है।
ॐ उससे अप्रत्याख्यान लोभमें उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्म विशेष अधिक है।
६ १२६. कितना अधिक है ? श्रावलिके असंख्यातवें भागका भाग देनेपर जो एक भाग लब्ध आवे उतना अधिक है।
* उससे प्रत्याख्यान मानमें उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्म विशेष अधिक है।
६१२७. कितना अधिक है ? लोभके द्रव्यमें श्रावलिके असंख्यातवें भागका भाग देनेपर वहां जो एक भाग लब्ध आवे उतना अधिक है, क्योंकि यह भिन्न प्रकृति है।
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