Book Title: Kasaypahudam Part 07
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[पदेसविहत्ती ५ पंधगदा संखे०गुणा, लदणqसयवेदबंधगदाबहुभागत्तादो। इत्थिवेदस्स च कुरवेसु संचओ कदो । तेण रदिदव्वादो इत्थिवेददव्वं संखेज्जगुणं ति सिद्धं ।
* सोगे उक्कासपदेससंतकम्मं विसेसाहिय।।
5 १४१. कुदो ! कुरवित्थिवेदबंधगदादो तत्थतणसोगबंधगद्धाए विसेसाहियत्तादो । केत्तियमेत्तो विसेसो ? इत्थिवेदबंधगद्धाए संखे० भागमेत्तो ।
* अरदीए उक्कस्सपदेससंतकम्मं विसेसाहियं ।
१४२. केत्तियमेत्तेण १ सोगदव्वे आवलियाए असंखे भागेण खंडिदे तत्थ एयखंडमेतेण।
* पव॑सयवेदउक्कल्सपदेससंतकम्मं विसेसाहियं ।
१४३. कुदो ? ईसाणदेवअरदि-सोगबंधगदादो तत्थतणणqसयवेदबंधगदाए विसेसाहियत्तुवलंभादो। केत्तियमेत्तो विसेसो ? हस्स-रदिवंधगद्ध संखेजखंड करिय तत्थ बहुखंडमेत्तो।
ॐ दुगुछाए उकस्सपदेससंतकम्मं विसेसाहिय।
। १४४. ईसाणदेवेसु णवंसयवेदबंधगद्धादो दुगुंछाबंधगद्धाए ईसाणं गदिथिस्त्रीवेदका बन्धक काल संख्यातगुणा है, क्योंकि वहां पर नपुंसकवेदके बन्धक कालकी अपेक्षा स्त्रीवेदका बन्धक काल बहुभागप्रमाण उपलब्ध होता है और देवकुरु तथा उत्तरकुरुमें स्त्रीवेदका सञ्चय प्राप्त किया गया है, इसलिए रतिके द्रव्यसे स्त्रीवेदका द्रव्य संख्यातगुणा है यह सिद्ध होता है।
* उससे शोकमें उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्म विशेष अधिक है।
३१४१. क्योंकि देवकुरु और उत्तरकुरुमें प्राप्त होनेवाले स्त्रीवेदके बन्धक कालसे वहां पर शोकका बन्धक काल विशेष अधिक है। विशेषका प्रमाण कितना है ? स्त्रीवेदके बन्धक कालके संख्यातवें भागप्रमाण है।
उससे अरतिमें उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्म विशेष अधिक है।
६ १४२. कितना अधिक है ? शोकके द्रव्यमें आवलिके असंख्यातवें भागका भाग देनेपर जो एक भाग लब्ध आवे उतना अधिक है।
* उससे नपुसकवेदका उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्म विशेष अधिक है ।
$ १४३. क्योंकि ईशान कल्पके देवोंमें प्राप्त होनेवाले अरति और शोकके बन्धक कालसे वहां पर नपुंसकवेदका बन्धक काल विशेष अधिक उपलब्ध होता है। विशेषका प्रमाण कितना है? हास्य और रतिके बन्धक कालके संख्यात खण्ड करने पर उनमेंसे बहुभागप्रमाण है।
* उससे जुगुप्सामें उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्म विशेष अधिक है। $ १४४. क्योंकि ईशान कल्पके देवोंमें नपुंसकवेदके बन्धक कालसे जुगुप्साका बन्धक
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