Book Title: Kasaypahudam Part 07
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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गा० २२] उत्तरपयडिपदेसविहत्तीए पोसणपरूवणा
७२. पोसणं दुविहं-जहण्णमुक्कस्सं च । उक्कस्से पयदं । दुविहो णि०ओघेण आदेसेण य । ओघेण छब्बीसं पयडीणमुक्क० पदेसविहत्तिएहि केवडियं खेतं पोसिदं ? लोगस्स असंखे०भागो। अणुक्क० सव्वलोगो । सम्म०-सम्मामि० उक्क० पदे. केव० १ लोगस्स असंखे०भागो। अणुक्क० लोग० असंखे०भागो अढचोदस भागा देसूणा सव्वलोगो वा ।।
____७३. आदेसेण णेरइएमु अट्ठावीसं पयडीणमुक्क० लोग० असंखे०भागो। अणुक्क. लोग० असंखे० भागो छचोद्दस भागा देसूणा । एवं सत्तमाए। पढमाए पुढवीए खेत्तभंगो। विदियादि जाव छहि त्ति अहावीसं पयडीणमुक्क० खेत्तं । अणुक० लोग० असंखे०भागो एक-वे-तिण्णि-चत्तारि-पंचचोइस भागा देसूणा । विदित होता है कि इनकी जघन्य और अजघन्य प्रदेशविभक्तिवाले जीवोंका क्षेत्र उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिवाले जीवोंके समान बन जाता है, इसलिए उसे उनके समान जाननेकी सूचना की है।
६ ७२. स्पर्शन दो प्रकारका है-जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश। ओघसे छब्बीस प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इनकी अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिवाले जीवोंने सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट प्रदेश विभक्तिवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग, सनालीके कुछ कम आठ बटे चौदह भाग और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है।
विशेषार्थ-सब प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिके स्वामित्वको देखनेसे विदित होता है कि उनका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागसे अधिक सम्भव नहीं है, इसलिए वह उक्त प्रमाण कहा है। तथा छब्बीस प्रकृतियोंकी अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्ति एकेन्द्रिय आदि जीवोंके भी सम्भव है, इसलिए इनकी अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिवाले जीवोंका स्पर्शन सर्व लोकप्रमाण कहा है। तथा सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिवाले जीवोंका वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भाग है, क्योंकि ये जीव पल्यके असंख्यातवें भागसे अधिक नहीं होते, इसलिए इनका वर्तमान स्पर्शन उक्त क्षेत्रप्रमाण ही प्राप्त होता है । तथा देवोंके विहारवत्स्वस्थान आदिकी अपेक्षा यह स्पर्शन त्रसनालीके कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण और मारणान्तिक व उपपादपदकी अपेक्षा सर्व लोकप्रमाण बन जानेसे उक्त प्रमाण कहा है।।
६७३. आदेशसे नारकियोंमें अट्ठाईस प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालीके कुछ कम छह बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । इसी प्रकार सातवीं पृथिवीमें जानना चाहिए। पहली पृथिवीमें क्षेत्रके समान भङ्ग है। दूसरीसे लेकर छठी पृथिवी तकके नारकियोंमें अट्ठाईस प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिवाले जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। अनुत्कृष्ट प्रदेश विभक्तिवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग, वसनालीके कुछ कम एक, कुछ कम दो, कुछ कम तीन, कुछ कम चार और कुछ कम पाँच बढे
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