Book Title: Kasaypahudam Part 07
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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-- जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ पदेसविहत्ती ५ जह० पदे० जहण्णुक्क० एगसः। अज० जह० अंतोमु०, उक्क० सगहिदीओ। . ६३५. अणुद्दिसादि जाव अवराइदो ति मिच्छत्त-सम्मामि०-इत्थि-णqसयबेदाणं जह० पदे० जहण्णुक्क० एगस० । अज० ज. जहण्णहिदी, उक्क० उक्कस्सहिदी। सम्मत्त जह० पदे० जहण्णुक्क० एगस० । अज. जह० एगस०, उक्क. सगहिदी । एवमणंताणु चउक्क०-हस्स-रदि-अरदि-सोगाणं । णवरि अज० जह० अंतोमु०। बारसक०-पुरिस-भय-दुगुंछाणं जह० पदे० जहण्णुक्क० एगस० । अज० जह० जहण्णहिदी समऊणा, उक्क० सगहिदी।
और उत्कृष्ट काल अपनी अपनी उत्कृष्ट स्थितिप्रमाण है। पाँच नोकषायोंकी जघन्य प्रदेशविभक्तिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अजघन्य प्रदेशविभक्तिका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्तप्रमाण है और उत्कृष्ट काल अपनी अपनी उत्कृष्ट स्थितिप्रमाण है।
विशेषार्थ—यहाँ बारह कषाय, भय और जुगुप्साकी जघन्य प्रदेशविभक्ति भवके प्रथम समयमें होती है, इसलिए इनकी अजघन्य प्रदेशविभक्तिका जघन्य काल एक समय कम अपनी अपनी जघन्य स्थितिप्रमाण कहा है। शेष काल सुगम है, क्योंकि उसका सामान्य देवोंमें स्पष्टीकरण आये हैं। उसी प्रकार यहाँ भी कर लेना चाहिए। ___ ३५. अनुदिशसे लेकर अपराजित तकके देवोंमें मिथ्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व, स्त्रीवेद और नपुंसकवेदकी जघन्य प्रदेशविभक्तिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अजघन्य प्रदेशविभक्तिका जघन्य काल अपनी अपनी जघन्य स्थितिप्रमाण है और उत्कृष्ट काल अपनी अपनी उत्कृष्ट स्थितिप्रमाण है। सम्यक्त्वकी जघन्य प्रदेशविभक्तिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अजघन्य प्रदेशविभक्तिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अपनी अपनी स्थितिप्रमाण है। इसी प्रकार अनन्तानुबन्धीचतुष्क, हास्य, रति, अरति और शोककी अपेक्षा काल जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनकी अजघन्य प्रदेशविभक्तिका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है। बारह कषाय, पुरुषवेद, भय और जुगुप्साकी जघन्य प्रदेशविभक्तिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अजघन्य प्रदेशविभक्तिका जघन्य काल एक समय कम अपनी अपनी जघन्य स्थितिप्रमाण है और उत्कृष्ट काल अपनी अपनी उत्कृष्ट स्थितिप्रमाण है।
विशेषार्थ—यहाँ मिथ्यात्व आदिकी जघन्य प्रदेशविभक्ति जघन्य आयुवाले जीवोंके भवके प्रथम समयमें सम्भव नहीं है, इसलिए इनकी अजघन्य प्रदेशविभक्तिका जघन्य काल अपनी अपनी जघन्य स्थितिप्रमाण और उत्कृष्ट काल अपनी अपनी उत्कृष्ट स्थितिप्रमाण कहा है। कृतकृत्यवेदकके कालमें एक समय शेष रहने पर ऐसा जीव मरकर यहाँ उत्पन्न हो सकता है, इसलिए सम्यक्त्वकी अजघन्य प्रदेशविभक्तिका जघन्य काल एक समय कहा है। अनन्तानुबन्धीचतुष्क आदि आठ प्रकृतियोंकी जघन्य प्रदेशविभक्ति भवके अन्तर्मुहूर्तं बाद प्राप्त होती है, इसलिए इनकी अजघन्य प्रदेशविभक्तिका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त कहा है। बारह कषाय आदि की जघन्य प्रदेशविभक्ति भवके प्रथम समयमें होती है, इसलिए इनकी अजघन्य प्रदेशविभक्तिका जघन्य काल एक समय कम अपनी अपनी जघन्य स्थितिप्रमाण कहा है। इन सब प्रकृतियोंकी अजघन्य प्रदेशविभक्तिका उत्कृष्ट काल अपनी अपनी उत्कृष्ट स्थितिप्रमाण है यह स्पष्ट ही है। .. ...
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