Book Title: Kartikeyanupreksha
Author(s): Kartikeya Swami, Mahendrakumar Patni
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 17
________________ गाथा संख्या ३६३,३६४ १६४ १६५ ३६७, ३६८ ३६६ ३७० ३७१, ३७२ ३७३ से ३७६ ३७७ ३७८ ३७६ से ३८१ ३८२, ३८३ ३८४ ३८५ ३८६, ३८७ ३८८, ३८६ ३९० ३६१ ३६२ [ १४ ] विषय पृष्ठ संख्या आहारदान प्रधान है दानका माहात्म्य चौथा शिक्षाव्रत (देशावकाशिक) १६५ अंत सल्लेखना निरतिचार एक भी व्रत पालनेवाला इंद्र होता है १६७ तीसरी सामायिक प्रतिमा १६७ प्रोषधप्रतिमाका स्वरूप १६८ प्रोषधका माहात्म्य १७० आरंभ आदिके त्याग बिना उपवास करनेसे कर्मनिर्जरा नहीं होती १७० सचित्तत्याग प्रतिमा १७१ रात्रिभोजनत्याग प्रतिमा १७२ ब्रह्मचर्य प्रतिमा १७३ आरंभविरति प्रतिमा १७३ परिग्रहत्याग प्रतिमा १७४ अनुमोदनविरति प्रतिमा उद्दिष्टविरति प्रतिमा १७६ अंतसमयमें आराधना करनेका फल १७६ मुनिधर्मका व्याख्यान १७८ दस प्रकारके धर्मका वर्णन १७६ उत्तम क्षमा उत्तम मार्दव १८० उत्तम आर्जव १८१ उत्तम शौच १८१ उत्तम सत्य १८२ उत्तम संयम १८३ उत्तम तप १८६ उत्तम त्याग १८७ उत्तम आकिंचन्य १८७ उत्तम ब्रह्मचर्य १८८ १७६ ३६४ ३६५ ३६६ ३६७ ३६८ ३६६ ४०० ४०१ ४०२ ४०३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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