Book Title: Kartikeyanupreksha
Author(s): Kartikeya Swami, Mahendrakumar Patni
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 16
________________ [ १३ ] गाथा संख्या विषय पृष्ठ संख्या ३१६, ३२० व्यन्तर आदि देव लक्ष्मी देते हैं, उपकार करते हैं उनकी पूजा वन्दना करें या नहीं ? ३२१, ३२२ सम्यग्दृष्टिके विचार १४५ ३२३ सर्वज्ञके आगमके प्रतिकूल मिथ्यादृष्टि है १४६ ३२४ जो विशेष तत्त्वको नहीं जानता है और जिनवचनमें आज्ञा मात्र श्रद्धान करता है सो भी श्रद्धावान् है १४६ ३२५ से ३२७ सम्यक्त्वका माहात्म्य १४६ ३२८, ३२६ दार्शनिक श्रावक (पहली प्रतिमा) १४८ व्रत प्रतिमा (दूसरी प्रतिमा) १४६ ३३१, ३३२ पहिला अणुव्रत (अहिंसा) १५० ३३३, ३३४ दूसरा अणुव्रत (सत्य) १५१ ३३५, ३३६ तीसरा अणुव्रत (अचौर्य) १५२ ३३७,३३८ चौथा अणुव्रत (ब्रह्मचर्य) १५३ ३३६, ३४० पांचवां अणुव्रत (परिग्रह परिमाण) १५४ ३४१, ३४२ पहिला गुणव्रत (दिग्व्रत) १५५ दूसरा गुणव्रत (अनर्थदंड) १५५ ३४४ पहिला अनर्थदंड (अपध्यान) १५६ ३४५ दूसरा अनर्थदंड (पापोपदेश) तीसरा अनर्थदंड (प्रमादचरित) १५७ ३४७ चौथा अनर्थदंड (हिंसादान) ३४८ पांचवां अनर्थदंड (दुःश्र ति) १५८ ३४६ अनर्थदंडके कथनका संकोच १५८ ३५०, ३५१ तीसरा गुणव्रत (भोगोपभोग) १५६ ३५२, ३५३ पहिला शिक्षाव्रत (सामायिक) ३५४ सामायिकका काल १६० ३५५ से ३५७ सामायिकमें आसन तथा लय और मन वचन कायको शुद्धता ३५८, ३५६ दूसरा शिक्षाव्रत (प्रोषधोपवास) १६२ ३६०, ३६१ तीसरा शिक्षाव्रत (अतिथिसंविभाग) १६३ ३६२ आहार आदि दानका माहात्म्य १६४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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