Book Title: Karma Ka Vignan
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 9
________________ संपादकीय अकल्पित, अनिर्धारित घटनाएँ अक्सर टी.वी. अथवा अखबार से जानने को मिलती हैं। जैसे कि प्लेन क्रेश हुआ और ४०० लोग मर गए, बड़ा बम ब्लास्ट हुआ, आग लगी, भूकंप, तूफ़ान आए, हज़ारों लोग मारे गए! कितने ही एक्सिडेन्ट में मारे गए, कुछ रोग से मरे और कुछ जन्म लेते ही मर गए! कुछ लोगों ने आत्महत्या की भूखमरी के कारण! धर्मात्मा काली करतूतें करते हुए पकड़े गए, कितने ही भिखारी भूखे मर गए! जब कि संत, भक्त, ज्ञानी जैसे उच्च महात्मा निजानंद में जी रहे हैं! हररोज़ दिल्ली के कांड पता चलते हैं, ऐसे समाचारों से हरएक मनुष्य के हृदय में एक बड़ा प्रश्नचिन्ह खड़ा हो जाता है कि इसका रहस्य क्या है? इसके पीछे कोई गुह्य कारण होगा? निर्दोष बालक जन्म लेते ही क्यों अपंग हुआ? हृदय द्रवित हो जाता है, खूब मंथन करने के बावजूद समाधान नहीं मिल पाता और अंत में अपने-अपने कर्म हैं, ऐसा मानकर, असमाधान को प्राप्त भारी मन के साथ चुप हो जाते हैं! कर्म हैं ऐसा कहते हैं, फिर भी कर्म क्या होता होगा? किस तरह से बँधता होगा? उसकी शुरूआत क्या है? पहला कर्म कहाँ से शुरू हुआ? कर्म में से मुक्ति मिल सकती है? कर्म के भुगतान को टाला जा सकता है? भगवान करते होंगे या कर्म करवाता होगा? मृत्यु के बाद क्या? कर्म कौन बाँधता होगा! भुगतता है कौन? आत्मा या देह? अपने लोग कर्म किसे कहते हैं? काम-धंधा करें, सत्कार्य करें, दानधर्म करें, उन सबको 'कर्म किया' कहते हैं, ज्ञानी उसे कर्म नहीं कहते परन्तु कर्मफल कहते हैं। जो पाँच इन्द्रियों से देखे जा सकते हैं, अनुभव किए जा सकते हैं, वे सभी स्थूल में हैं वे कर्मफल यानी कि डिस्चार्ज कर्म कहलाते हैं। पिछले जन्म में जो चार्ज किया था, वह आज डिस्चार्ज में आया, रूपक में आया और अभी जो नया कर्म चार्ज कर रहे हैं, वह तो सूक्ष्म में होता है, उस चार्जिंग पोइन्ट का किसीको भी पता चले ऐसा नहीं है। एक सेठ के पास एक संस्थावाले ट्रस्टी धर्मार्थ दान देने के लिए दबाव डालते हैं, इसलिए सेठ पाँच लाख रुपये दान में देते हैं। उसके बाद उस सेठ के मित्र सेठ से पूछते हैं कि 'अरे, इन लोगों को तूने क्यों दिए? ये सब चोर हैं,

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