Book Title: Karma Ka Vignan
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 82
________________ ६९ कर्म का विज्ञान हैं, इसलिए समूह का काम। पहले समूह थे ही नहीं न! प्रश्नकर्ता : हं... अर्थात् कुदरती कोप, वह समूह का ही परिणाम है न! यह अनावृष्टि होना, यह किसी जगह पर भारी बाढ़ आ जाना, किसी जगह पर भूकंप से लाखों लोगों का मर जाना। दादाश्री : सब इन लोगों का ही परिणाम। प्रश्नकर्ता : यानी जिस समय दंड मिलना हो, तब चाहे जहाँ से खिंचकर यहाँ पर आ ही गया होता है? दादाश्री : ये कुदरत ही ले आती है वहाँ पर और उबाल देती है, भून देती है। उसे प्लेन में लाकर प्लेन को गिरा देती है। प्रश्नकर्ता : हाँ, दादा। ऐसे उदाहरण देखने में आते हैं कि जो जानेवाला हो, वह किसी कारण से रह जाता है और कभी भी नहीं जानेवाला हो, वह उसकी टिकट लेकर बैठ गया होता है। फिर प्लेन गिरकर टूट जाता है। दादाश्री : हिसाब है सारा। पद्धति अनुसार न्याय। बिल्कुल धर्म के काँटे जैसा। क्योंकि उसका मालिक नहीं है, मालिक हो, तब तो अन्याय हो। प्रश्नकर्ता : एयर-इन्डिया का प्लेन टूट गया। वह सबका निमित्त था, यह व्यवस्थित था? दादाश्री : हिसाब ही। हिसाब के बिना तो कुछ होता नहीं। पाप-पुण्य का नहीं होता प्लस-माइनस प्रश्नकर्ता : पाप कर्म और पुण्यकर्म का प्लस-माइनस (जोड़बाक़ी) होकर नेट में रिज़ल्ट आता है, भुगतने में? दादाश्री : नहीं, प्लस-माइनस नहीं होता। पर उसका भुगतना कम किया जा सकता है। प्लस-माइनस का तो, यह दुनिया है तब से ही नियम

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