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कर्म का विज्ञान चुका है, कोई बीमार पड़नेवाला है या किसीका कुछ नुकसान होनेवाला है, तो प्रार्थना से उसे बदल सकते हैं क्या?
दादाश्री : ऐसा है न, प्रारब्ध के भाग हैं। प्रारब्ध के प्रकार होते हैं। एक प्रकार ऐसा होता है कि वह प्रार्थना करने से उड़ जाता है। दूसरा प्रकार ऐसा है कि आप साधारण पुरुषार्थ करो तो उड़ जाता है। और तीसरा प्रकार ऐसा है कि आप चाहे जितना पुरुषार्थ करो, पर भुगते बिना चारा नहीं होता। बहुत गाढ़ होता है। तो किसी व्यक्ति अपने कपड़ों पर थूका, उसे ऐसे धोने जाएँ और वह हल्का हो तो पानी डालने पर धुल जाता है। बहुत गाढ़ हो तो?
प्रश्नकर्ता : नहीं निकलता।
दादाश्री : उसी प्रकार जो कर्म गाढ़ होते हैं, उन्हें निकाचित कर्म कहा है।
प्रश्नकर्ता : पर कर्म बहुत गाढ़ हों तो प्रार्थना से भी कुछ फ़र्क नहीं पड़ता?
दादाश्री : कुछ फ़र्क नहीं पड़ता। पर प्रार्थना से उस घड़ी सुख लगता है।
प्रश्नकर्ता : भुगतने की शक्ति मिलती है?
दादाश्री : नहीं, यह आपको जो दुःख आया है न, दुःख में सुख का भाग लगता है, प्रार्थना के कारण। पर प्रार्थना रह सके, वह मुश्किल है। ये संयोग खराब हों, और मन जब बिगड़ा हुआ हो, उस घड़ी प्रार्थना रहनी मुश्किल है। उस घड़ी रहे तो बहुत उत्तम कहलाता है। तब दादा भगवान जैसे को याद करके बुलाओ कि जो खुद शरीर में नहीं रहते हैं, शरीर के मालिक नहीं हैं, उन्हें यदि याद करके बुलाएँगे तो वह रहेगा, नहीं तो नहीं रहेगा।
प्रश्नकर्ता : वर्ना उन संयोगों में प्रार्थना याद ही नहीं आएगी?