Book Title: Karma Ka Vignan
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 84
________________ ७१ कर्म का विज्ञान (माइनस) नहीं करते। इसलिए आदमी को, जो जमा किया हो, वह फिर भुगतना पड़ता है, वह पुण्य अच्छा नहीं लगता फिर, बहुत पुण्य इकट्ठा हो गया हो न, दस दिन, पंद्रह दिन खाने करने का, सब शादियाँ वगैरह चल रही हो, अच्छा नहीं लगता ऊब जाते हैं। बहुत पुण्य से भी ऊब जाते हैं, बहुत पाप से भी ऊब जाते हैं। पंद्रह दिन तक सेन्ट और इत्र ऐसे घिसते रहे हों, खूब खाना खिलाया, फिर भी खिचड़ी खाने के लिए घर पर भाग जाता है। क्योंकि यह सच्चा सुख नहीं है। यह कल्पित सुख है। सच्चे सुख का कभी भी अभाव ही नहीं होता। वह आत्मा का जो सच्चा सुख है, उसका अभाव कभी भी होता ही नहीं। यह तो कल्पित सुख है। कर्मबंधन में से मुक्ति का मार्ग... प्रश्नकर्ता : पुनर्जन्म में कर्मबंध का हल लाने का रास्ता क्या है? हमें ऐसा साधारण मालूम है कि पिछले जन्म में हमने अच्छे या बुरे सभी कर्म किए हुए ही हैं, तो उन्हें हल करने का रास्ता क्या है? दादाश्री : यदि कोई तुझे परेशान कर रहा हो, तो तू अब समझ जाता है कि मैंने इसके साथ पूर्वजन्म में खराब कर्म किए हैं, उसका यह फल दे रहा है, तो तुझे शांति और समता से उसका निबेड़ा लाना है। खुद से शांति रहती नहीं और वापिस दूसरा बीज डालता है तू। इसलिए पूर्वजन्म के बंधन खोलने का एक ही रास्ता है, शांति और समता। उसके लिए खराब विचार भी नहीं आना चाहिए और मेरा ही हिसाब भोग रहा हूँ, वैसा होना चाहिए। यह जो कर रहा है, वह मेरे पाप के आधार पर ही, मैं मेरे ही पाप भुगत रहा हूँ, वैसा लगना चाहिए, तो छुटकारा होगा। और वास्तव में आपके ही कर्म के उदय से वह दुःख देता है। वह तो निमित्त है। पूरा जगत् निमित्त है, दुःख देनेवाला, रास्ते में सौ डॉलर ले लेनेवाला, सभी निमित्त हैं। आपका ही हिसाब है। आपको यह पहले नंबर का इनाम कहाँ से लगा? इन्हें क्यों नहीं लगता? सौ डॉलर ले लिए, वह इनाम नहीं कहलाता? __ प्रार्थना का महत्व, कर्म भुगतने में प्रश्नकर्ता : दादा, मैं प्रश्न ऐसा पूछ रहा था कि जो प्रारब्ध बन

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