Book Title: Karma Ka Vignan
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 86
________________ ७३ कर्म का विज्ञान दादाश्री : याद ही नहीं आएगी। याद को ही उड़ा देती है, भान ही उड़ जाता है सारा। देवी-देवताओं की मनौती का बंधन? प्रश्नकर्ता : किसी भी देवी-देवता की मनौती रखने से कर्म बंधन होता है क्या? दादाश्री : मनौती रखने से कर्म बंधन अवश्य होता है। मनौती अर्थात् क्या कि उनके पास से हमने मेहरबानी माँगी। इसलिए वे मेहरबानी करते भी हैं, और आप उसका बदला देते हो, और उससे ही कर्म बँधते प्रश्नकर्ता : संत पुरुष के सहवास से कर्म बंधन छूटते हैं क्या? दादाश्री : कर्म बंधन कम हो जाते हैं और पुण्य के कर्म बँधते हैं, पर वे उसे नुकसान नहीं करते। पाप के बंधन नहीं बंधते। जागृति, कर्मबंधन के सामने.... प्रश्नकर्ता : कर्म नहीं बँधे, उसका उपाय क्या है? दादाश्री : यह कहा न, तुरन्त ही भगवान से कह देना यह, अरेरे! मैंने ऐसे-ऐसे खराब विचार किए। अब ये जो आए हैं वे तो, उनका हिसाब होगा तब तक रहेंगे, पर मुझे तो ऐसा हुआ कि 'ये अभी कहाँ से आए मुए!' यह मैंने हिसाब बाँधा। उसकी क्षमा माँगता हूँ, फिर से ऐसा नहीं करूँगा। प्रश्नकर्ता : कोई खून करे और फिर भगवान से पछतावा करके ऐसा कहे, तो कर्म किस तरह छूटते हैं? दादाश्री : हाँ, छूटते हैं। खून करके खुश हो तो खराब कर्म बँधते हैं, और खून करके ऐसा पछतावा करने से कर्म हल्के हो जाते हैं। प्रश्नकर्ता : कुछ भी करे, फिर भी कर्म तो बँधा ही न?

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