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कर्म का विज्ञान वह तो आता है सभी को! 'यह' आए ऐसा नहीं है, इसलिए हमारे जैसे सिखानेवाले चाहिए।
फाँसी की सजा का जज को क्या बंधन? एक जज मुझे कहते हैं कि, 'साहब, आपने मुझे ज्ञान तो दे दिया और अब मुझे वहाँ कोर्ट में फाँसी की सजा करनी चाहिए या नहीं?' तब मैंने उन्हें कहा, 'उसका क्या करोगे, फाँसी की सजा नहीं दोगे तो?' उसने कहा, 'लेकिन दूंगा तो मुझे दोष लगेगा।'
फिर मैंने उसे तरीका बताया कि आपको यह कहना है कि, 'हे भगवान, मेरे हिस्से में यह काम कहाँ से आया?' और उसका दिल से प्रतिक्रमण करना। और दूसरा, गवर्मेन्ट के नियम के अनुसार काम करते जाना।
प्रश्नकर्ता : किसीको हम दुःख पहुँचाएँ और फिर हम प्रतिक्रमण कर लें, पर उसे भारी आघात-ठेस पहुँची हो तो उससे हमें कर्म नहीं बँधेगा?
दादाश्री : हम उसके नाम के प्रतिक्रमण करते रहें, और उसे जितनी मात्रा में दुःख हुआ हो, उतनी मात्रा में प्रतिक्रमण करने पड़ेंगे। हमें तो प्रतिक्रमण करते रहना है। दूसरी ज़िम्मेदारी हमारी नहीं है।
हमेशा किसी भी कार्य का पछतावा करो, तो उस कार्य का फल रुपये में बारह आने तक नाश हो ही जाता है। (उस कार्य का फल पचहत्तर (७५) प्रतिशत खत्म हो जाता है।) फिर जली हुई डोरी होती है न, उसके जैसा फल आता है। वह जली हुई डोरी आनेवाले जन्म में बस ऐसे ही करें, तो उड़ जाएगी। कोई क्रिया यों ही बेकार तो जाती ही नहीं। प्रतिक्रमण करने से वह डोरी जल जाती है, पर डिज़ाइन वैसी की वैसी रहती है। अब आनेवाले जन्म में क्या करना पड़ेगा? इतना ही किया, झाड़ दिया कि उड़ गई।
जप-तप से कर्म बँधते हैं या खपते हैं? प्रश्नकर्ता : जप-तप में कर्म बँधते हैं या कर्म खपते हैं?